Sunday, December 22, 2013

प्रेम की भ्रान्ति |

      आज मैं अपनी बात एक कहानी के साथ शुरू कर रहा हूँ |एक बार सतयुग में शिव-पार्वती कैलाश से उतर कर विश्व-भ्रमण पर निकले |उस समय पार्वती ने देखा कि मरुस्थल में एक तालाब के किनारे मृग जोड़े के दो शव पड़े हैं |पार्वती ने भगवान शंकर से पूछा-"भगवन!ये दोनों कैसे मर गए ?"शिव ने कहा-"प्रिये!ये दोनों प्यास से मर गए |"पार्वती को आश्चर्य हुआ तालाब में दोनों के लिए प्रयाप्त पानी भी था |बिलकुल किनारे पर ही दोनों शव पड़े थे |फिर प्यास से कैसे मर गए?पार्वती ने शंकर से अपनी इस शंका को दूर करने की प्रार्थना की |शिव ने कहा-"हे गिरिजे!ये दोनों एक दूसरे से अतिशय प्रेम करते थे |दोनों में से हरेक यह चाहता था कि पहले वह पानी पिए और अपनी प्यास बुझाये |परन्तु दोनों में से कोई भी पहले क पानी पीने को तैयार नहीं था |इसी पहले आप,पहले आप के आग्रह में समय बीत गया और दोनों जल के अभाव में मूर्छित होकर धरा पर गिर गए और अंत में मृत्यु को प्राप्त हो गए |"पार्वती को दोनों के बीच अगाध प्रेम होने की बात सुनकर आश्चर्य हुआ और दोनों का एक दूसरे के प्रति समर्पण जानकर उस प्रेम को प्रणाम किया |
                       समय पंख लगाकर उड़ता गया |दिन,साल और काल बीतते गए |कलियुग आ गया |शिव-पार्वती फिर से एक दिन कैलाश से उतारकर विश्व-भ्रमण को निकले |जब उसी मरुस्थल से गुजर रहे थे तो उसी तालाब के किनारे उसी प्रकार एक मृग जोड़े के शव पड़े थे |पार्वती उनको देखकर शिव से बोली -"देखिये महाराज|इनके बीच का जन्म-जन्मों का प्रेम देखकर मैं आश्चर्य चकित हूँ |पानी होते हुए भी एक दूसरे के प्रेम में ये दोनों प्यासे ही मर गए |"शंकर मुस्कुराये |पार्वती की तरफ उन्मुख होकर बोले-"नहीं प्रिये|ऐसा कुछ भी नहीं है |ये दोनों पति-पत्नी जरूर है |प्यासे होने पर तालाब के किनारे पानी पीने आये भी थे |परंतु दोनों में प्रत्येक को पानी अपने लिए ही प्रयाप्त लगा |अतः दोनों जिद्द करने लगे कि पानी पहले वह स्वयं पीएगा |इसी चक्कर में दोनों एक दूसरे को पानी पीने से रोकते रहे |इस रोका टोकी में समय बीतता गया और प्यास से व्याकुल दोनों ही मूर्छित होकर मृत्यु को प्राप्त हुए |"
                           अब पार्वती को आश्चर्य होना ही था |वह बोली-"भगवन!इतने समय में ऐसा क्या परिवर्तन आ गया कि इन दोनों का प्रेम वैसा नहीं रहा जैसा कुछ काल पूर्व में था |"शिव बोले-"यह सब समय का फेर है दैवी |साथ साथ रहना प्रेम पैदा करदे यह आवश्यक नहीं है |जब दोनों में से कोई एक के मन में भी स्वार्थवश एक आकांक्षा जन्म ले लेती है तो फिर प्रेम का अभाव होना अवश्यम्भावी है |लेकिन दोनों का एक साथ बने रहना प्रेम की भ्रान्ति ही पैदा करता है, वास्तव में वहाँ प्रेम होता नहीं है |"
                               यह सुनकर पार्वती ने क्या सोचा होगा ,शंकर को और क्या पूछा होगा मैंने कहीं भी पढ़ा नहीं है |परन्तु भगवान शंकर द्वारा पार्वती को अंत में जो कुछ भी कहा वह प्रेम के और प्रेम होने की भ्रान्ति के बारे में सब कुछ स्पष्ट कर देता है |
                                           || हरिः शरणम् ||

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