Saturday, December 28, 2013

प्रथम-प्रेम |(First love)

                                         जहाँ प्रेम है तो वहाँ उसकी कहानियां ,उसकी कथाएं तो होगी ही |इस संसार में अधिकतम चर्चाएँ उन्ही बातों की होती है जिनकी उपलब्धता सबसे कम होती है |जब प्याज सस्ते मिला करते थे तब कभी आपने उसकी  चर्चा की क्या ?और जब प्याज की कीमत आसमान छूने लगी तब चारों और प्याज ही प्याज की चर्चाए ,उसकी बातें होने लगी |दीपक की कमी हमें तभी खलती है जब अँधेरी रात में अचानक वह बुझ जाता है |जब तक वह जल रहा होता है तब तक हम उस दीपक की,उसके प्रकाश की बात बिलकुल भी नहीं करते हैं |कहने का मंतव्य यह है कि हमें जिस चीज की आवश्यकता होती है और अगर उसकी उपलब्धता कम होती है तो हमें उस चीज की कमी खलने लगती है | उस कमी के कारण और जिसकी हमें आवश्यकता होती है उसको लेकर फिर कहानियां और कथाये बन ही जाती है |जो कालान्तर में हमें मार्ग-दर्शन करती रहती है |
                          प्रथम-प्रेम के बारे में भी ऐसी ही एक कथा बहुत प्रसिद्ध है |एक लड़का ,एक लड़की के प्रेम में,उसके प्यार में गहराई तक डूब गया था |उस लड़की को उसका प्रेम मात्र शारीरिक आकर्षण महसूस हो रहा था |उस लड़की ने उसके प्रेम की परीक्षा लेनी चाही |उसने लड़के को एक दिन कहा कि अगर वह सच्चे मन से उसे इतना ही प्रेम करता है ,तो वह अपनी माँ का कलेजा लाकर उसे दे |तभी वह उसके  प्रेम को वास्तविक प्रेम मानेगी |लड़का यह बात सुनकर अपनी माँ के पास पहुंचा |माँ ने उसे अनमना देखकर उससे इसका कारण पूछा|उसने सारी बात बता दी और स्पष्ट कर दिया कि वह उस लड़की के बिना जिन्दा नहीं रह पायेगा |माँ ने उसे प्यार किया ,बड़े स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरा और बोली-"बेटा,तूँ पहले हाथ-मुंह धो ले |आराम से खाना खा ले |फिर चाकू से मेरा कलेजा मुझे चीर कर निकाल लेना ,और उसे दे देना |मेरा क्या है,मैंने तो अपनी जिंदगी जी ली |मेरी जिंदगी तो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए है |"इतना कहकर माँ ने बड़े प्रेम से उसे खाना खिलाया और अपने पुत्र के सामने बैठ गयी |पुत्र ने अपनी माँ को मारकर उसका कलेजा निकाल लिया |लड़के ने अपने माँ का कलेजा अपनी हथेली पर रखा और बड़ी तेजी से अपनी प्रेमिका को देने के लिए चला |रास्ते में पड़े पत्थर से ठोकर खाकर वह गिर पड़ा |अचानक हथेली पर रखे माँ के ह्रदय में से आवाज आयी-"बेटा उठ,तुम्हे कहीं चोट तो नहीं लगी |"बेटा हतप्रभ रह गया |वह उठा और तेजी से चलकर अपनी प्रेमिका के पास पहुंचा|उसने उस लड़की के सामने माँ का  कलेजा रख दिया |अब हतप्रभ रहने की बारी लड़की की थी |वह उसकी माँ के कलेजे को देखकर रोती हुई उस लड़के से बोली-"मैं तुम्हारा प्रेम अस्वीकार करती हूँ |जो अपनी माँ को भी प्रेम नहीं कर सका ,वह मुझे क्या खाक प्रेम करेगा " अब आप उस लड़के की मनोस्थिति का ख्याल कीजिये |क्या बीत रही होगी उसके दिल पर ,यह सब सुनकर ?उसे जरूर इस वक्त अपनी माँ के प्रेम की,माँ की कमी खल रही होगी |
                     कहानी का अर्थ एक ही है |जिंदगी में हर किसी को पहला प्यार अपनी माँ से ही मिलता है |यहीं से उसके ह्रदय में प्रेम का बीजारोपण होता है |अगर आप अपनी जिंदगी में ,अपनी आकांक्षाये,अपनी कामनाये पूरी करने के लिए माँ के प्यार की बलि चढाते हैं तो जीवन भर आपको उस प्रथम-प्रेम की कमी खलेगी और फिर से इस प्रेम की कोई न कोई एक नई कहानी बन जायेगी |जब भी आप किसी दुःख दर्द से परेशान होते हो ,तकलीफों का सामना कर रहे होते हो तो सबसे पहले आपके मुंह से माँ का नाम निकलेगा,अन्य किसी का नहीं |जब भी बचपन में आपको किसी भी चीज की आवश्यकता महसूस हुई थी, आपने प्रत्येक के लिए अपनी माँ से ही उपलब्ध कराने को कहा था ,किसे अन्य को नहीं |यही है आपके जीवन का प्रथम-प्रेम|कृपया इसे कभी भी भूलिएगा नहीं |अगर भूल गए तो फिर आपको परमात्मा नहीं मिल पाएंगे |माँ भी तो परमात्मा है |माँ के दर्शन ही तो भगवान के दर्शन है |
                          जब माँ गर्भ-धारण करती है तभी से इस संसार में आने वाले शिशु से उसका प्रेम-सम्बन्ध बन जाता है |जब शिशु जन्म लेता है ,तब माँ बड़े प्यार और जतन से उसका लालन-पालन करती है |शिशु का लगाव भी अपनी माँ से बढता जाता है |आपने यह कई बार अनुभव किया होगा कि शिशु जब रोता है तब माँ के अलावा यदि उसे कोई गोद में लेता है तो भी उसका रोना बंद नहीं होता है |ज्यों ही माँ उसे अपनी गोद में लेती है ,तुरंत ही शिशु चुप हो जाता है और बड़े ही प्यार से अपनी माँ को निहारता है और उसे यूँ देखता है मानो शिकायत कर रहा हो कि तुम इतनी देर कहाँ थी?धीरे धीरे शिशु जब बड़ा होता है ,सारी बातें और सब कुछ अपनी माँ से ही सिखता जाता है |संसार में इतनी अधिक बोलचाल की भाषाएँ है परन्तु शिशु सबसे पहले "माँ" शब्द ही बोलना शुरू करता है |है ना,आश्चर्य की बात | एक अध्ययन से पता चला है कि जिस शिशु की माँ जन्म के तुरंत बाद ही उसे त्याग देती है उन शिशुओं का शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है और अन्य समान उम्र के शिशुओं से वह धीमी गति से विकास करता है |उसमे असुरक्षा की भावना ज्यादा  होती है और वह संकोची स्वभाव वाला होता है |
                       शिशु द्वारा अपनी माँ से जो लगाव जन्म से ही होता है वह उसके जीवन का प्रथम-प्रेम है |यह प्रेम अविस्मरणीय है |चाहे इस संसार की चकाचौंध में वह बड़ा होकर इसे भूल जाये परन्तु प्रत्येक मुसीबत के समय उसे जरूर इस प्रेम का स्मरण हो आता है ,और तत्काल उसके मुंह से निकल आता है -"हे,माँ|"
                               || हरिः शरणम् ||

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