प्रायः लोग प्रेम को एक प्रकार की भावुकता समझते हैं |परन्तु वास्तव में यह एक भावुकता नहीं है |भावुक होना,भावना में बहना ,प्रेम कदापि नहीं है |जज्बाती होना और भावुक होना एक प्रकार की संवेदनशीलता है,एक प्रकार का अहसास है |जो प्रेम की प्रारंभिक अवस्था में प्रायः प्रकट हो ही जाता है |अगर वास्तव में आप प्रेम को प्राप्त हो जाते हो तो फिर उस प्रेम में भावुकता का स्थान खो जाता है |हो सकता है आपको मेरा यह कहना सही नहीं लगे ,परन्तु यह सत्य है की वास्तविक प्रेम में भावुकता का स्थान कहीं पर भी नहीं होता है |आपने प्रायः देखा होगा कि परमात्मा की भक्ति की प्रारंभिक अवस्था में जब लोग उनकी पूजा और आराधना करते हैं तब उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकलती है |आप समझते हैं कि इस व्यक्ति का परमात्मा के प्रति अगाध प्रेम है,इस लिए उस कारण से यह अश्रु प्रवाह है |
मैं पूछता हूँ कि क्या आपका यह कहना सही है ?आप का जवाब "हाँ"में होगा |हो सकता है कि आप सही कह रहे हो |परन्तु मेरे विचार इस सम्बन्ध में आपसे भिन्न हैं |मैं कहता हूँ कि यह आपकी भावुकता हो सकती है,प्रेम नहीं |प्रेम में दो कभी भी रहते ही नहीं है,सदैव एक ही रहता है |जबकि भावुकता में दो का होना आवश्यक है |आप और परमात्मा ,अगर दो हैं तो आपका परमात्मा के लिए अश्रुप्रवाह एकदम सही है |और आपकी यह अश्रुधारा भावुकता का प्रदर्शन है,प्रेम का नहीं |जब आप और परमात्मा एक ही हैं तो फिर किसके लिए रोना और क्यों रोना ?प्रेम में प्रेमी(Lovers) और प्रमेय(Measurement of love) दोनों ही खो जाते हैं |और जब दोनों में अंतर मिट जाता है ,दोनों एक हो जाते है तो फिर किसको किसकी कमी खलेगी,कौन किसको चोट पहुँचायेगा,कौन किसका अपमान करेगा,कौन किससे दूर चला जायेगा और कौन किसको खो देगा ?जब इन सबकी सम्भावना मन में उठती रहती है तब प्रेम पर भावुकता हावी हो जाती है ,और प्रेम ही खोने लगता है |
अतः भावुक होना प्रेम से दूर जाना है,प्रेमी को खो देने का डर है,प्रेमी द्वारा अपमान करने का भय है,प्रेमी के द्वारा चोट पहुंचाए जाने का भय है और बिछोह का संदेह होना है||और जहाँ भय है ,संदेह है वहाँ भावुकता हो सकती है,प्रेम नहीं |
|| हरिः शरणम् ||
मैं पूछता हूँ कि क्या आपका यह कहना सही है ?आप का जवाब "हाँ"में होगा |हो सकता है कि आप सही कह रहे हो |परन्तु मेरे विचार इस सम्बन्ध में आपसे भिन्न हैं |मैं कहता हूँ कि यह आपकी भावुकता हो सकती है,प्रेम नहीं |प्रेम में दो कभी भी रहते ही नहीं है,सदैव एक ही रहता है |जबकि भावुकता में दो का होना आवश्यक है |आप और परमात्मा ,अगर दो हैं तो आपका परमात्मा के लिए अश्रुप्रवाह एकदम सही है |और आपकी यह अश्रुधारा भावुकता का प्रदर्शन है,प्रेम का नहीं |जब आप और परमात्मा एक ही हैं तो फिर किसके लिए रोना और क्यों रोना ?प्रेम में प्रेमी(Lovers) और प्रमेय(Measurement of love) दोनों ही खो जाते हैं |और जब दोनों में अंतर मिट जाता है ,दोनों एक हो जाते है तो फिर किसको किसकी कमी खलेगी,कौन किसको चोट पहुँचायेगा,कौन किसका अपमान करेगा,कौन किससे दूर चला जायेगा और कौन किसको खो देगा ?जब इन सबकी सम्भावना मन में उठती रहती है तब प्रेम पर भावुकता हावी हो जाती है ,और प्रेम ही खोने लगता है |
अतः भावुक होना प्रेम से दूर जाना है,प्रेमी को खो देने का डर है,प्रेमी द्वारा अपमान करने का भय है,प्रेमी के द्वारा चोट पहुंचाए जाने का भय है और बिछोह का संदेह होना है||और जहाँ भय है ,संदेह है वहाँ भावुकता हो सकती है,प्रेम नहीं |
|| हरिः शरणम् ||
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