क्या आपको कभी ऐसा महसूस नहीं होता की प्रेम एक असाधारण अहसास है ?आप को प्रेम का कभी भी अहसास नहीं होगा,आपको प्रेम कभी भी अनुभव नहीं होगा यदि आप सदैव अपने बारे में ही सोचते रहते हो |स्वयं के बारे में न सोचो इसका अर्थ कदापि भी यह नहीं है कि आप किसी अन्य के बारे में सोचो |प्रेम है,इसका मतलब प्रेम है |प्रेम का कोई विषय,लक्ष्य,वस्तु या अभिप्राय नहीं होता है| प्रेम तो बस केवल प्रेम ही होता है |कोई धार्मिक और अध्यात्मिक मन ही प्रेम कर सकता है क्योंकि ऐसा मन सत्य,वास्तविकता और परमात्मा को जानने को उत्सुक होता है |और केवल ऐसा मन ही सौंदर्य क्या होता है,जान सकता है |मन,जो किसी दार्शनिकता और विश्वास में नहीं उलझता,अपनी कामनाओं से ऊपर उठ जाता है,वह संवेदनशील,जागरूक,और सदैव सक्रिय रहता है |ऐसा मन ही वास्तव में सुन्दर मन कहलाता है |मन का सौंदर्य ही सच्चे प्रेम की पहचान है |
जब आपके मन की कामनाएं आपके ह्रदय को संतुष्ट नहीं कर पाती है,ह्रदय अपने आप में कोई कमी महसूस करता है ,तब प्रेम का बीजारोपण होता है |कामनाएं कभी भी किसी को संतुष्ट नहीं कर पाती है |एक कामना पूरी हो जाती है तो फिर या तो उसी कामना का और अधिक विस्तार हो जाता है या फिर कोई नई कामना जन्म ले लेती है |जब ह्रदय इनसे आहत होकर अपने आपमें रिक्तता अनुभव करने लगता है तब उस रिक्तता को प्रेम ही पूर्णता प्रदान करता है |आप वास्तव में तभी प्रेम कर सकते हैं जब आप किसी पर भी अपना अधिकार ज़माने की कोशिश न करे,किसी भी प्रकार की ईर्ष्या से परे रहें,शत्रुता न रखे |तब आपका ह्रदय क्षमा करने की स्थिति प्राप्त कर लेगा|आप में सबके लिए सम्मान की भावना,सब के लिए दया भाव व सहानुभूति पैदा हो जायेगी |प्रेम कही पर भी पैदा नहीं किया जा सकता,प्रेम कभी भी अभ्यास करके प्राप्त नहीं किया जा सकता और विचार करके भी कभी प्रेम नहीं किया जा सकता |प्रेम का विचार केवल मन ही कर सकता है |जब आप मन में उठ रहे इन विचारों पर नियंत्रण कर लेंगे तब आप इस स्थिति में होंगे कि जान सके कि प्रेम क्या होता है और सौंदर्य क्या है ?
परोक्ष रूप से देखा जाये तो लोग आजकल केवल बाहरी सुंदरता को ही महत्त्व देते हैं |हालाँकि बात वे आंतरिक सुंदरता की ही करते हैं |यह आंतरिक सौंदर्य की आड़ उन्हें अपनी आकांक्षाएं पूरी करने के लिए आवश्यक महसूस होती है |आंतरिक सौंदर्य की बात करने से आप अपने प्रेम को बेहतर तरीके से व्यक्त कर सकते हैं |परन्तु आंतरिक सौंदर्य व बाह्य सौंदर्य में बहुत बड़ा अंतर है |आपमें आंतरिक सौंदर्य तभी पैदा होगा जब आप संसार में प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम करने लगोगे |आप बहुत अच्छे कवि और लेखक हो सकते है,आप अपने काम में बहुत ही कुशल होंगे,परन्तु अगर आप में प्रेम करने की क्षमता नहीं है तो फिर सब व्यर्थ है |वास्तविक सौंदर्य तो आपके ह्रदय का प्रेम से परिपूर्ण होना ही है |आपकी कार्य कुशलता आपका बाहरी सौंदर्य है जिसका कोई ज्यादा महत्त्व नहीं है |जब आपके हृदय में प्रेम होगा तो आपका आंतरिक सौदर्य निखरेगा |आंतरिक सौंदर्य कभी भी भीतर छुपा नहीं रह सकता |वह एक दिन बाहर प्रकट हो ही जायेगा |कहते है न कि सुंदरता तो देखने वाले की नज़रों में होती है |आपकी आँखे केवल बाहरी सुंदरता देखती है जबकि आपकी दृष्टि आंतरिक सुंदरता |बाहरी सौंदर्य से आपका किसी विशेष के प्रति आकर्षण और लगाव हो सकता है |भीतरी सौंदर्य ही आपको किसी के बारे में वास्तविक प्रेम उपलब्ध करवा सकता है |अतः आपको बाहरी सौंदर्य पर ध्यान देने के स्थान पर भीतरी सौंदर्य पर ध्यान देना चाहिए |जिस दिन आप भीतर से सुन्दर होंगे,बाहरी सुंदरता अपने आप निखर आएगी |यही वास्तविक प्रेम की पहचान है |
|| हरिः शरणम् ||
जब आपके मन की कामनाएं आपके ह्रदय को संतुष्ट नहीं कर पाती है,ह्रदय अपने आप में कोई कमी महसूस करता है ,तब प्रेम का बीजारोपण होता है |कामनाएं कभी भी किसी को संतुष्ट नहीं कर पाती है |एक कामना पूरी हो जाती है तो फिर या तो उसी कामना का और अधिक विस्तार हो जाता है या फिर कोई नई कामना जन्म ले लेती है |जब ह्रदय इनसे आहत होकर अपने आपमें रिक्तता अनुभव करने लगता है तब उस रिक्तता को प्रेम ही पूर्णता प्रदान करता है |आप वास्तव में तभी प्रेम कर सकते हैं जब आप किसी पर भी अपना अधिकार ज़माने की कोशिश न करे,किसी भी प्रकार की ईर्ष्या से परे रहें,शत्रुता न रखे |तब आपका ह्रदय क्षमा करने की स्थिति प्राप्त कर लेगा|आप में सबके लिए सम्मान की भावना,सब के लिए दया भाव व सहानुभूति पैदा हो जायेगी |प्रेम कही पर भी पैदा नहीं किया जा सकता,प्रेम कभी भी अभ्यास करके प्राप्त नहीं किया जा सकता और विचार करके भी कभी प्रेम नहीं किया जा सकता |प्रेम का विचार केवल मन ही कर सकता है |जब आप मन में उठ रहे इन विचारों पर नियंत्रण कर लेंगे तब आप इस स्थिति में होंगे कि जान सके कि प्रेम क्या होता है और सौंदर्य क्या है ?
परोक्ष रूप से देखा जाये तो लोग आजकल केवल बाहरी सुंदरता को ही महत्त्व देते हैं |हालाँकि बात वे आंतरिक सुंदरता की ही करते हैं |यह आंतरिक सौंदर्य की आड़ उन्हें अपनी आकांक्षाएं पूरी करने के लिए आवश्यक महसूस होती है |आंतरिक सौंदर्य की बात करने से आप अपने प्रेम को बेहतर तरीके से व्यक्त कर सकते हैं |परन्तु आंतरिक सौंदर्य व बाह्य सौंदर्य में बहुत बड़ा अंतर है |आपमें आंतरिक सौंदर्य तभी पैदा होगा जब आप संसार में प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम करने लगोगे |आप बहुत अच्छे कवि और लेखक हो सकते है,आप अपने काम में बहुत ही कुशल होंगे,परन्तु अगर आप में प्रेम करने की क्षमता नहीं है तो फिर सब व्यर्थ है |वास्तविक सौंदर्य तो आपके ह्रदय का प्रेम से परिपूर्ण होना ही है |आपकी कार्य कुशलता आपका बाहरी सौंदर्य है जिसका कोई ज्यादा महत्त्व नहीं है |जब आपके हृदय में प्रेम होगा तो आपका आंतरिक सौदर्य निखरेगा |आंतरिक सौंदर्य कभी भी भीतर छुपा नहीं रह सकता |वह एक दिन बाहर प्रकट हो ही जायेगा |कहते है न कि सुंदरता तो देखने वाले की नज़रों में होती है |आपकी आँखे केवल बाहरी सुंदरता देखती है जबकि आपकी दृष्टि आंतरिक सुंदरता |बाहरी सौंदर्य से आपका किसी विशेष के प्रति आकर्षण और लगाव हो सकता है |भीतरी सौंदर्य ही आपको किसी के बारे में वास्तविक प्रेम उपलब्ध करवा सकता है |अतः आपको बाहरी सौंदर्य पर ध्यान देने के स्थान पर भीतरी सौंदर्य पर ध्यान देना चाहिए |जिस दिन आप भीतर से सुन्दर होंगे,बाहरी सुंदरता अपने आप निखर आएगी |यही वास्तविक प्रेम की पहचान है |
|| हरिः शरणम् ||
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