हम सब
कामनाओं के जाल में इस हद तक उलझे हुए हैं कि हम किसी भी कीमत पर अपनी कामनाएं
पूरी करना चाहते हैं |हम
कामनाओं के द्वारा ही अपने जीवन में संतुष्ट होना चाहते हैं |हम यह कभी भी अनुभव नहीं कर सकते कि
इन कामनाओं ने इस संसार को कितनी अधिक हानि पहुँचाई है-हमारी व्यक्तिगत सुरक्षा को,हमारी सफलताओं को,हमारी शक्ति और इज्जत को |हम यह कभी भी नहीं जान पाते हैं कि
हमारे साथ जो कुछ भी हो रहा है ,सब के लिए हम स्वयं ही जिम्मेवार हैं,अन्य कोई नहीं |अगर मानव जीवन में कोई अपनी कामनाओं
और इच्छाओं को भली भांति समझ ले ,उनकी प्रकृति को जान ले तब अनुभव होता है कि जीवन में कामनाओं और
इच्छाओं का कितना और कैसा महत्त्व है ?जहाँ प्रेम है ,वहाँ कामनाओं का क्या कोई महत्व हो सकता है ?
सच
कहूँ,वास्तव
में हम सबमे प्रेम का अभाव है |हम खुश हैं,आनंदित
हैं,हमें
अच्छी अनुभूति होती है,विपरीत
सेक्स के प्रति हमारा आकर्षण है,परिवार,पुत्र,पत्नी ,पति और राष्ट्र के साथ हमारा लगाव हो
सकता है|परन्तु
आप इन सबको प्रेम नहीं कह सकते |यह आकर्षण होना ,लगाव होना प्रेम नहीं है |न ही प्रेम कोई दैवीय होता है |प्रेम तो किसी के समक्ष पूर्णता के
साथ ,समर्पण
होता है |आप एक
पेड की अच्छी तरह देखभाल करते हो,पडौसी के साथ आपका व्यवहार अच्छा हो,बच्चों की देखभाल भली प्रकार कर रहे
हो,उनकी
शिक्षा का ख्याल रख रहे हो आदि |केवल बच्चे को स्कूल में दाखिला दिला देना,उसे ऐसी शिक्षा दिलाना जिससे उसे
अच्छी नौकरी मिले ,यह
उसके प्रति प्रेम नहीं ,बल्कि
उसमें आपकी आकांक्षाएं प्रदर्शित होती है |प्रेम के बिना आपमें नैतिकता नहीं
होगी,सात्विकता
नहीं होगी |आप
सम्मानित हो सकते है परन्तु आप नैतिक हो ही,नहीं कहा जा सकता |आप किसी की कोई वस्तु नहीं चुराते है,आप किसी की कोई आलोचना नहीं करते ,आप पडौसी से अच्छा व्यवहार रखते है ,आप किसी स्त्री का पीछा नहीं
करते हैं -ऐसा आप कानून के डर से ,या समाज में इज्जत पाने की भावना से
भी कर सकते है |संसार
में सम्मान पाने की कामना रखना ,इस संसार की सबसे निम्न स्तर की कामना करना है |जब इन छोटी छोटी निम्न स्तर की बातों
से ,कामनाओं
से अपने आप को अलग कर लेंगे तब आप सबसे प्रेम करने लगोगे और आपमें नैतिकता
अपने आप आ जायेगी |फिर आप
अपने अंदर प्रकट हुए प्रेम के कारण,अपनी नैतिकता के बल पर वह सब करोगे जो
आप आज सम्मान पाने की कामना से करते हैं |
|| हरिः
शरणम् ||
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