जहाँ आपकी कामनाओं और इच्छाओं का अंत होता
है,प्रेम का प्रारंभ वहीँ से होता है |संसार में जितनी भी त्यागने योग्य वस्तुएं
या बातें है,उनके त्याग के पश्चात जो शेष रहता है,वही प्रेम है |किसी से कोई
आकांक्षा रखना,किसी से वैमनस्य रखना,किसी को दुःख पहुँचाना,हानि पहुँचाना,बेवजह
किसी को परेशानी में डालना,अपने स्वार्थ के कारण किसी से ज्यादा की आशा रखना,सम्मान
की अपेक्षा रखना आदि सब त्याज्य है |जिस दिन व्यक्ति का इन सब से मोह भंग हो जायेगा
,उसी दिन वह प्रेम को उपलब्ध हो जायेगा | प्रेम के लिए केवल अपने आप को मिटा देना
होता है |जितनी भी इच्छाए,कामनाएं और आकांक्षाएं हैं वे सब व्यक्ति के अहम् का ही
पोषण करती है |और जब तक आप के अंदर अहम् का अस्तित्व है ,तब तक प्रेम का अंकुरण हो
ही नहीं सकता |
प्रत्येक व्यक्ति का अपने परिवार,पत्नी,पति,मित्र,राष्ट्र आदि के साथ एक
प्रकार का लगाव और आकर्षण होता है |आप अपने पति या पत्नी के साथ जीवन बिताते
हैं,आपको एक दूसरे की आवश्यकता होती है |इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आपके मध्य
एक प्रकार का बंधन पैदा हो जाता है |यह बंधन तब तक ही रहता है जब तक पति-पत्नी की
आकांक्षाएं एक दूसरे से पूरी हो रही होती है |जिस दिन इनके पूरी होने में व्यवधान
पैदा होगा,उस दिन यह बंधन भी ढीला पड़ने लगता है |यह बंधन आपस में एक दूसरे के
प्रति लगाव तो पैदा कर सकता है,परन्तु प्रेम नहीं |प्रेम पैदा होने के लिए दोनों
के मध्य पैदा हुई आकांक्षाओं का समाप्त होना आवश्यक है |आज संसार में
पति-पत्नी के मध्य इन्ही आकांक्षाओं के कारण अविश्वास की भावनाये पैदा हो रही है
,जिनका परिणाम तलाक के रूप में सामने आ रहा है |बढाती तलाक की संख्याये इस को
साबित कर रही है |आज के समय में शादी,पति-पत्नी की एक दूसरे की आकांक्षाएं पूरी
करने का समझौता बनती जा रही है |एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना न जाने कहाँ खो
गयी है ?बिना समर्पण के समझौता तो हो सकता है,प्रेम नहीं |
यह जीवन बिना प्रेम के एक शुष्क मरुस्थल के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है
|क्योंकि यहाँ अपने आनंद के लिए प्रत्येक के मन में केवल कामनाएं भरी है |प्रेम के
लिए कोई स्थान उपलब्ध नहीं है |बिना प्रेम के आपके जीवन का कोई मूल्य नहीं है |बिना
प्रेम के जीवन यंत्रवत होता है |जहाँ प्रत्येक दिन,सुबह से शाम तक व्यक्ति अपनी
कामनाएं पूरी करने के लिए एक मशीन की भांति कार्य करता रहता है |
प्रेम के प्राकट्य के लिए
सुनदरता का होना आवश्यक है |बिना सुंदरता के आपमें प्रेम का अंकुरण हो ही नहीं सकता
|सुंदरता से अर्थ केवल सुंदर चहरे,मोहरे से नहीं है |सुंदरता दिल की भी होती है,वह
दिल जो जानता हो कि प्रेम क्या होता है? यह सुंदरता जब आप को किसी के प्रति आकर्षित होने को मजबूर कर देती है ,तब वह आकर्षण ही प्रेम के प्रारंभ होने की पहली सीढ़ी बन जाती है |यहाँ मन आकांक्षाओं से रहित होता है,इसलिए यही मन की सुंदरता है जिसका आकर्षण प्रेम का बीज बन जाता है|जब आपका मन सुन्दर होगा,आपके भीतर प्रेम
होगा ,तब आप जो कुछ भी करेंगे वह सब सही होगा |फिर आप किसी को दुखी नहीं कर
सकोगे,किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकते,आप किसी को हानि नहीं पहुंचा सकते और
ऐसा कोई कार्य आपसे हो ही नहीं सकता जो अनुचित हो |
||हरिः
शरणम् ||
If you know how to love,then you can do what you like because it will solve all other problems.
-J.Krishnamurti
If you know how to love,then you can do what you like because it will solve all other problems.
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