जीवो जीवस्य जीवनम्-1
इस संसार
में दो प्रकार की सृष्टि है, एक अचेतन (Non-conscious) और दूसरी चेतन (conscious) |
अचेतन के अंतर्गत सभी पदार्थ (Material) आ जाते हैं और चेतन के अंतर्गत सभी जीव
(Organism) | जीव किसे कहते हैं ? जीव वह पदार्थ कहलाता है जिसमें चेतना है अर्थात
चैतन्य हुए पदार्थ को जीव कहा जाता है | जीव में पदार्थ क्या है और चेतना क्या है ?
एक जीव में उसका भौतिक शरीर (Physical body) तो पदार्थ है और चेतना (consciousness)
उसमें अवस्थित वह शक्ति जो उसको अचेतन से भिन्न बनाती है | फिर जीव भी दो प्रकार
के होते हैं – चर (Motile) और अचर (Non-motile)| चर वे जीव हैं जो अपनी इच्छा से
इधर-उधर घूम-फिर सकते हैं और अचर वे जीव होते हैं जो एक स्थान पर ही थिर रहते हैं |
चर जीव अपनी भूख मिटाने के लिए, स्वयं के शरीर को नाश से बचाने हेतु किसी सुरक्षित
स्थान पर आश्रय लेने के लिए तथा संतानोत्पत्ति हेतु इधर-उधर घूमते हैं जबकि अचर
प्राणियों के इन्हीं तीनों कार्यों के लिए प्रकृति उनके लिए सहायक बनती है |
प्रत्येक जीव का होना एक दूसरे पर निर्भर
हैं | दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि एक जीव का जीवन दूसरे जीव के जीवन पर निर्भर
है | श्रीमद्भागवतमहापुराण में नारदजी युधिष्ठिर से कहते हैं –
अहस्तानि सहस्तानामपदानि
चतुष्पदाम् |
फल्गूनि तत्र महतां
जीवो जीवस्य जीवनम् ||भागवत-1/13/46||
अर्थात हाथवालों के
बिना हाथ वाले, चार पैरों वाले पशुओं के बिना पैर वाले (अचर) और उनमें भी बड़े
जीवों के छोटे जीव आहार हैं | इस प्रकार एक जीव दूसरे जीव के जीव का कारण हो रहा
है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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