Friday, April 10, 2020

जीवो जीवस्य जीवनम्-5


जीवो जीवस्य जीवनम्-5 
सह-अस्तित्व ( Co-existance) अर्थात एक जीव के शरीर की सुरक्षा दूसरे जीव के जीवन पर निर्भर है –
           हम प्रायः देखते हैं कि एक जीव को जब स्वयं के जीवन पर अन्य किसी जीव से कोई खतरा महसूस होता है तभी वह उस पर आक्रमण करता है, अन्यथा नहीं | साथ ही यह भी सत्य है कि किसी जीव के शरीर का रक्षण भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से कोई अन्य जीव ही करता है | इसको हम प्राकृतिक संतुलन कहते हैं | आधुनिक समय में यह प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है, उसी का परिणाम है कि कई साधारण से दिखाई देने वाले जीवों ने अन्य जीवों के जीवन को खतरे में डाल दिया है |
        मनुष्य की आंत में एक छोटा जा कीटाणु रहता है जिसको कहते हैं- लैक्टोबैसिलस (Lactobacillus) | यह जीव मनुष्य की आँतों में रहकर अपना जीवन तो सुचारु रूप से चलाता तो है ही, साथ ही साथ मनुष्य शरीर के लिए आवश्यक विटामिन बी भी यह बनाता है | यह सह-अस्तित्व का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है | इसी प्रकार चौपाये पशुओं के शरीर पर जीवन यापन करने वाले छोटे कीड़ों को पक्षी उदरस्थ कर उस पशु के जीवन की रक्षा करते हैं | इस प्रकार एक जीव (पक्षी) का आहार स्वयं के जीवन के साथ-साथ दूसरे जीव (पशु) के जीवन की रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण बन जाता है | यह एक जीव के जीवन का दूसरे जीव के जीवन का सहयोग मिलने का परोक्ष उदाहरण है | इसी प्रकार सूअर गन्दगी को खाकर मनुष्य जाति पर बड़ा उपकार कर रहे हैं | बीमारियों के जो कीटाणु, गन्दगी से मक्खी के माध्यम से हमारे भोजन तक पहुँच सकते हैं, सूअर उस गन्दगी को मिटाकर हमारे जीवन को सुरक्षित रखने में सहयोग देता है |
           एक जीव के नष्ट हो जाने पर दूसरे जीवों का जीवन भी संकट से घिर जाता है |  अभी गत वर्षों में इसी प्रकार एक जीव के अस्तित्व पर संकट बना हुआ है, वह जीव है गिद्ध | गिद्ध को इस संसार का सफाई कर्मी (Scavenger) कहा जाता है जो कि मृत पशुओं को खाकर उनके शरीर को ठिकाने लगता है | अगर गिद्ध नहीं रहेंगे तो फिर मृत जीवों का भक्षण कौन करेगा ? ऐसे में उनके शरीर सडेंगे-गलेंगे और मनुष्य तथा अन्य जीवों के जीवन पर संकट पैदा करेंगे | दुर्भाग्य से दुधारू पशुओं की प्रजनन क्षमता बढ़ने और उनसे अधिक दूध प्राप्त करने के लोभ में मनुष्य ने दवाओं का उपयोग किया है | ऐसे पशु जब मर जाते हैं तब उनको गिद्ध खाते हैं | ऐसी दवाओं के प्रभाव से मृत पशु के विकृत हुए मांस को खाने से गिद्ध का जीवन भी असमय ही समाप्त हो जाता है | इस प्रकार पैदा हुए प्राकृतिक असंतुलन से मनुष्य ही नहीं अन्य जीवों का जीवन भी संकट से घिर जायेगा | 
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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