जीवो जीवस्य जीवनम्-8
संतानोत्पति के लिए
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वनस्पति में संतानोत्पत्ति के लिए पौधे दो
प्रकार होते हैं – एक लिंगी पौधे और द्विलिंगी पौधे | जैसे पपीता का पौधा एक लिंगी
है | इसमें मादा और पुरुष पुष्प अलग अलग पौधों पर आते हैं | इसी कारण से पपीता का
एक पौधा कभी भी फल नहीं दे सकता | इसका फल पाने के लिए कम से कम दो पौधे जिसमें एक
नर और एक मादा के होने चाहिए | द्विलिंगी पौधों में एक ही पादप के पुष्प में
स्त्री केसर (Pistil) और पुंकेसर (Stamen) दोनों होते हैं | पुंकेसर पर परागकण (Pollen
Grains) होते हैं और स्त्रीकेसर में अंडाशय (Ovary) और अंडा (Ovum) | दोनों ही
प्रकार के पादपों में संतानोत्पति के लिए कीटों का जीवन आवश्यक है | कीट अपना जीवन
चलाने के लिए आहार इन्हीं पादपों के पुष्पों (Flowers) से प्राप्त करते हैं | जैसे
भँवरा और मधुमखी अपने आहार के लिए अर्थात मधु बनाने के लिए पराग एकत्रित करने
इन्हीं पौधों के फूलों पर आते है |
पुष्प में प्रवेश करते ही उनके पैरों
पर पुंकेसर का पराग लग जाता है | जब वह कीट दूसरे पौधे के पुष्प पर और अधिक पराग
एकत्रित करने जाता है तो उस पुष्प का स्त्रीकेसर उस कीट के पैरों पर लगे पराग कणों
को ग्रहण कर लेती है | इस प्रक्रिया को परागण (Pollenation) कहा जाता है | पराग कणों
को ग्रहण करते ही स्त्रीकेसर में उपस्थित अण्डों का निषेचन (Fertilisation) हो
जाता है जो समय पाकर फल के भीतर बीज (Seed) के रूप में परिवर्तित हो जाते है | कुछ
पौधों और पेड़ों में पराग कण एक पुष्प से दूसरे पुष्प तक वायु अथवा जल के माध्यम से
भी पहुंचते हैं | रेफ्लिसिया नामक पौधे में तो परागण हाथी द्वारा होता है |
अब प्रश्न आता है कि इन बीजों का विकिरण
(Radiation) किस प्रकार होता है | विकिरण के मुख्य साधन प्राकृतिक रूप से वायु और
जल है | वायु से विकिरण का सबसे अच्छा उदाहरण है आक; जिसके बीजों को आप राजस्थान
में आंधी या तेज बह रही वायु में अपने तंतुओं के साथ उड़ते हुए देख सकते हैं | जल
से विकिरण का उदाहरण है, नारियल जो पानी में तैरते हुए मीलों तक चले जाते हैं | दूसरे
जीव भी विकिरण में माध्यम बनते हैं | कुछ जीव फलों को खा लेते है परन्तु उसमें
स्थित बीजों को पचा नहीं पाते हैं | ये बीज उसके गोबर में निकल जाते हैं और
जहाँ-जहाँ ये पशु जाते हैं वहां-वहां इन बीजों का गोबर के साथ विकिरण करते जाते
हैं | इसी प्रकार एक घास है, भरूंट घास | इस घास के बीज में छोटे छोटे चुभने वाले
कांटे होते हैं | जब पशु घास चरता है तो यह भरूंट उसकी त्वचा पर चिपक जाते हैं |
जब पशु दूसरे क्षेत्र में जाता है तो वायु के साथ अथवा पशु किसी पेड़ से अपनी त्वचा
को रगड़कर ये बीज वहां की भूमि पर गिरा देता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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