Tuesday, April 14, 2020

जीवो जीवस्य जीवनम् -9


जीवो जीवस्य जीवनम्-9  
           इस प्रकार हमने अचर जीवों के लिए “जीवो जीवस्य जीवनम्” उक्ति कैसे सटीक बैठती है, इस पर चर्चा की | आइये अब जानते हैं कि कोरोना महामारी में किस प्रकार  कुछ मनुष्यों के जीवन की रक्षा एक जीव के कारण संभव हो रही है | आप इसे विज्ञान की एक परिकल्पना मात्र ही कह सकते हैं क्योंकि कोरोना को अभी विज्ञान पूरी तरह से समझ ही नहीं पाया है |
          फिर भी ज्ञानवर्धन के लिए इस ओर भी दृष्टि डाल लेते हैं कि कोरोना का इस लेख से क्या सम्बन्ध है ? आज से पहले कोरोना से होने वाली बीमारी का नाम किसने सुना था ? चिकित्सकों को छोड़कर प्रायः किसी ने नहीं | कोरोना एक साधारण फ्लू के विषाणु की तरह का एक विषाणु है | प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ के कारण इसने वर्तमान समय में अपना उग्र रूप धारण कर लिया है | ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे इसकी महत्वपूर्ण भूमिका प्राकृतिक संतुलन को सही करने में है |
        सबसे छोटा जीव जीवाणु (Bacteria) कहलाता है जिसमें DNA होता है | कोशिका (Cell), उर्जा चयापचय (Energy metabolism),वंशवृद्धि क्षमता (Multiplication) और DNA की उपस्थिति, इन चार गुणों से किसी भी जीव (Organism) की पहचान होती है | जीवाणु से छोटे होते हैं विषाणु (Virus) परन्तु ये जीव न होकर मात्र प्रकृति के कारक (Agent) होते हैं | ये जीव भी नहीं है और इनको निर्जीव भी नहीं कहा जा सकता | इसका अर्थ है कि यह निर्जीव (पदार्थ) से जीव (प्राणी) बनने के बीच की अवस्था का एक कारक है | त्रिगुणी प्रकृति के कारक होने से इनमें प्रकृति का एक, केवल रासायनिक गुण (तामसिक) ही मुख्य रूप से उपस्थित होता है, जिसके कारण ही इनकी संहारक क्षमता प्रबल है | कोरोना विषाणु में प्रकृति के अन्य दो गुण, भौतिक गुण  (रजस) रासायनिक गुण (तमस) से कम और विद्युतीय गुण (सत्व) तो नाम मात्र के होते हैं | जीव नहीं है इसलिए ये जन्म और मृत्यु दोनों से ही मुक्त हैं | इनमें जीवाणु के चार गुणों में से प्रथम तीन गुणों का अभाव होता है |
           विषाणु दो प्रकार के होते हैं, DNA विषाणु और RNA विषाणु | DNA विषाणु के विरुद्ध एक निश्चित रोगप्रतिरोधक क्षमता प्राणी में बन जाती है, जैसे चेचक (Smallpox), छोटी चेचक (chickenpox), बोदरी (Measles),पीलिया (Hepatitis) आदि | इसी कारण से इन बीमारियों से बचाव के टीके बन चुके हैं | RNA विषाणु अपने में उपस्थित प्रोटीन को बार-बार परिवर्तित (Mutation) करता रहता है जिससे मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) सही दिशा में कार्य नहीं कर पाती | कहने का अर्थ है कि इस कारण से प्राणी में इसके विरुद्ध एक निश्चित प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो पाती | यही कारण है कि इस कोरोना विषाणु से बचाव का टीका बनना लगभग असंभव सा है | दूसरे शब्दों में कहूँ तो एक प्रकार से RNA विषाणु को प्रकृति का आयुध (Weapon of the nature) माना जा सकता है क्योंकि वह अपनी RNA संरचना को बार-बार परिवर्तित करता रहता है | यह उसी प्रकार से होता है जैसे सेना समय-समय पर दुश्मन की परिस्थिति के अनुसार अपनी युद्ध शैली बदलती रहती है | कोरोना वैसा ही एक RNA विषाणु है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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