जीवो जीवस्य जीवनम्-9
इस प्रकार हमने अचर जीवों के लिए “जीवो
जीवस्य जीवनम्” उक्ति कैसे सटीक बैठती है, इस पर चर्चा की | आइये अब जानते हैं कि
कोरोना महामारी में किस प्रकार कुछ मनुष्यों के जीवन की रक्षा एक जीव के कारण संभव
हो रही है | आप इसे विज्ञान की एक परिकल्पना मात्र ही कह सकते हैं क्योंकि कोरोना
को अभी विज्ञान पूरी तरह से समझ ही नहीं पाया है |
फिर भी ज्ञानवर्धन के लिए इस ओर भी दृष्टि डाल
लेते हैं कि कोरोना का इस लेख से क्या सम्बन्ध है ? आज से पहले कोरोना से होने
वाली बीमारी का नाम किसने सुना था ? चिकित्सकों को छोड़कर प्रायः किसी ने नहीं | कोरोना
एक साधारण फ्लू के विषाणु की तरह का एक विषाणु है | प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़
के कारण इसने वर्तमान समय में अपना उग्र रूप धारण कर लिया है | ऐसा प्रतीत हो रहा
है जैसे इसकी महत्वपूर्ण भूमिका प्राकृतिक संतुलन को सही करने में है |
सबसे छोटा जीव जीवाणु (Bacteria) कहलाता
है जिसमें DNA होता है | कोशिका (Cell), उर्जा चयापचय (Energy
metabolism),वंशवृद्धि क्षमता (Multiplication) और DNA की उपस्थिति, इन चार गुणों
से किसी भी जीव (Organism) की पहचान होती है | जीवाणु से छोटे होते हैं विषाणु (Virus)
परन्तु ये जीव न होकर मात्र प्रकृति के कारक (Agent) होते हैं | ये जीव भी नहीं है
और इनको निर्जीव भी नहीं कहा जा सकता | इसका अर्थ है कि यह निर्जीव (पदार्थ) से
जीव (प्राणी) बनने के बीच की अवस्था का एक कारक है | त्रिगुणी प्रकृति के कारक
होने से इनमें प्रकृति का एक, केवल रासायनिक गुण (तामसिक) ही मुख्य रूप से उपस्थित
होता है, जिसके कारण ही इनकी संहारक क्षमता प्रबल है | कोरोना विषाणु में प्रकृति
के अन्य दो गुण, भौतिक गुण (रजस) रासायनिक
गुण (तमस) से कम और विद्युतीय गुण (सत्व) तो नाम मात्र के होते हैं | जीव नहीं है
इसलिए ये जन्म और मृत्यु दोनों से ही मुक्त हैं | इनमें जीवाणु के चार गुणों में
से प्रथम तीन गुणों का अभाव होता है |
विषाणु दो प्रकार के होते हैं, DNA
विषाणु और RNA विषाणु | DNA विषाणु के विरुद्ध एक निश्चित रोगप्रतिरोधक क्षमता
प्राणी में बन जाती है, जैसे चेचक (Smallpox), छोटी चेचक (chickenpox), बोदरी (Measles),पीलिया
(Hepatitis) आदि | इसी कारण से इन बीमारियों से बचाव के टीके बन चुके हैं | RNA
विषाणु अपने में उपस्थित प्रोटीन को बार-बार परिवर्तित (Mutation) करता रहता है
जिससे मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) सही दिशा में कार्य नहीं कर पाती
| कहने का अर्थ है कि इस कारण से प्राणी में इसके विरुद्ध एक निश्चित प्रतिरोधक
क्षमता विकसित नहीं हो पाती | यही कारण है कि इस कोरोना विषाणु से बचाव का टीका
बनना लगभग असंभव सा है | दूसरे शब्दों में कहूँ तो एक प्रकार से RNA विषाणु को
प्रकृति का आयुध (Weapon of the nature) माना जा सकता है क्योंकि वह अपनी RNA
संरचना को बार-बार परिवर्तित करता रहता है | यह उसी प्रकार से होता है जैसे सेना
समय-समय पर दुश्मन की परिस्थिति के अनुसार अपनी युद्ध शैली बदलती रहती है | कोरोना
वैसा ही एक RNA विषाणु है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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