जीवो जीवस्य जीवनम् -17
आधुनिक समय में तथाकथित विकसित देशों
ने प्राकृतिक संतुलन को इतनी अधिक क्षति पहुंचाई है कि प्रकृति ने स्वयं को बचाने
के लिए कोरोना को ही युद्ध मैदान में उतार दिया है | आप स्वयं ही देख लीजिये,
जिसने भी आधुनिक शैली को अपनाया है, जिन्होंने मानवता को पीड़ित किया है, वे ही
प्रकृति के इस कोप के सर्वाधिक भाजन बन रहे हैं | आज विकसित देश आहार के लिए जीवों
की हत्याएं कर रहे है | अपनी सुख-सुविधाओं के लिए मूक जानवरों का वध कर उनसे विभिन्न
पदार्थ बनाये जा रहे हैं | भूख बढाने के लिए, स्वादिष्ट भोजन बनाने में, सौन्दर्य
प्रसाधन के लिए, यौन क्षमता बढाने के लिए आदि कई क्षेत्र हैं जिनमें मूक प्राणियों
के चमड़े से लेकर अस्थियाँ तक उपयोग में ली जा रही हैं |
यह तो मूक जानवरों के प्रत्यक्ष वध के
उदाहरण है | अप्रत्यक्ष रूप से भी कई प्राणियों का जीवन संकट में पड़ता जा रहा है |
वनों को काटा जा रहा है, जिससे जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं, पृथ्वी
के गर्भ को खरोंचा जा रहा है, नदियों को कारखानों के रसायनों से प्रदूषित कर दिया
गया है जिससे जलचरों का जीवन संकट में हैं आदि | अपने द्वारा सृजित जीवों पर आया
यह संकट प्रकृति कैसे सहन करती ? यदि यह प्राकृतिक संतुलन और अधिक विचलित हो
जायेगा तो प्रलय की स्थिति बन सकती है | इसलिए प्रकृति ने स्वयं और जीवों की
सुरक्षा हेतु अपने कारक कोरोना को संतुलन बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है | इतना सब कुछ
प्रकृति मनुष्य सहित सभी प्राणियों के भले के लिए कर रही है | आज हमें कोरोना से
हुई मौतें तकलीफ दे रही है परन्तु यह सब कुछ तो प्रकृति को क्षति पहुँचाने से पहले
सोचना चाहिए था | इस त्रासदी से मनुष्य को ही सीख लेने की आवश्यकता है |
प्रश्न उठता है कि कोरोना महामारी का “जीवो
जीवस्य जीवनम्” से क्या सम्बन्ध है ? सम्बन्ध है, प्रत्यक्ष नहीं बल्कि परोक्ष रूप
से सम्बन्ध है | आधुनिक जीवन शैली ने अनेकों जीवों के जीवन को संकट में डाल दिया
है | उन जीवों के जीवन को बचाने के लिए ही परमात्मा ने अपनी प्रकृति के माध्यम से
कोरोना को युद्ध मैदान में उतारा गया है | इस महामारी से भी अगर मनुष्य नहीं
सम्हला तो उस परम के तरकश में और भी कई तीर है | कोरोना महामारी मनुष्य जाति के
लिए एक सबक है | आज गंगा, यमुना आदि नदियाँ दो-चार सप्ताह में ही प्रदूषण से उबरने
लग गयी है | उनके जल में साँस ले रहे जीव भी शायद प्रकृति को धन्यवाद देते हुए
आभार व्यक्त कर रहे हैं | वायु और ध्वनि प्रदूषण में कमी आई है | मनुष्य की असली
परीक्षा तो इस महामारी से मुक्त होने के बाद होगी कि वह प्रकृति के संतुलन को बनाये
रखने के लिए भविष्य में अपना योगदान किस प्रकार देगा ?
कल अंतिम कड़ी
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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