Saturday, April 11, 2020

जीवो जीवस्य जीवनम्-6


जीवो जीवस्य जीवनम्-6 
संतानोत्त्पति के लिए जीवन –
            एक जीव का जीवन दूसरे जीव की संतानोत्पति में भी सहायक होता है | ऐसा प्रायः कीट प्रजाति के साथ होता है | कई प्रकार के कीट ऐसे होते हैं जो अपने अंडे पशुओं की विष्ठा/गोबर में देते हैं | पशुओं को मारे जाने की प्रवृति ने गोबर की उपलब्धता के क्षेत्र को सीमित कर दिया हैं | गोबर की अनुपलब्धता ने ऐसे कीटों के जीवन को संकट में डाल दिया है | वे अब अपना वंश बढाने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं | इसी प्रकार कई पक्षी जो पेड़ों पर घोंसला बनाकर अंडे दिया करते थे, घटते वन क्षेत्र ने उनके अस्तित्व पर भी संकट खड़ा कर दिया है |
            कौओं की संख्या दिन प्रतिदिन घटती ही जा रही है | इनकी संख्या इतनी कम हो गयी है कि श्राद्ध पक्ष में तो इनके दर्शन तक दुर्लभ हो गए हैं | मैना अपने अंडे कौओं के घोंसलों में रखती है और कौआ उसे अपने अंडे समझकर उनकी देखभाल करता है | इस प्रकार कौओं की घटती संख्या ने मैना की वंश वृद्धि पर अप्रत्यक्ष रूप से अंकुश लगा दिया है | इससे स्पष्ट है कि कौओं के जीवन का नष्ट होना मैना के जीवन को भी नष्ट कर देना है | अतः आवश्यक है कि प्रत्येक जीव के जीवन की रक्षा की जाए क्योंकि जीव ही जीव का जीवन है |
          मांसभक्षी पशुओं का जीवन शाकाहारी पशुओं के जीवन पर निर्भर है, उसी प्रकार शाकाहारी पशुओं का जीवन भी मांसाहारी पशुओं के जीवन पर निर्भर है | शेरों की घटती संख्या ने हिरणों की संतानोत्पति की दर को अप्रत्याशित रूप से कम कर दिया है | इसके मूल में कारण है, हिरणों के भीतर शेरों के द्वारा मारे जाने के भय का समाप्त हो जाना | जहाँ हिरणों के अभयारण्य बनाये गए हैं वहां तो समस्या ने और भी अधिक जटिलता पैदा कर दी है | वहां हिरणों की संख्या तो धीरे-धीरे बढ़ रही है परन्तु उनकी प्राकृतिक जीवन शैली नष्ट होती जा रही है | वे कुलांच भरना तो भूल ही रहे हैं और साथ ही उनको विभिन्न बीमारियों ने अपने घेरे में ले लिया है | संतानोत्पति में भी उनकी क्षमता कम हो रही है और पैदा हुई संतान भी निर्बल और असहाय होती जा रही है | यही हालत शेरों की भी है जिन्हें  एक सीमित क्षेत्र में पुनर्वासित किया गया हैं | वहाँ उनको प्राकृतिक रूप से शिकार करने के स्थान पर अन्य जीवों को मारकर उनका मांस खिलाया जा रहा है | इससे उनकी प्राकृतिक रूप से शिकार करने के साथ-साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता का ह्रास हो रहा है | अतः आज के समय इस बात की आवश्यकता है कि शिकार और शिकारी, दोनों प्रकार के पशुओं को प्राकृतिक रूप से एक ही स्थान पर विचरण करने दिया जाये जिससे दोनों का अस्तित्व बना रहे |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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