जीवो जीवस्य जीवनम्-14
केवल स्व-चेतन जीव मनुष्य का ही “जीवो
जीवस्य जीवनम्” से सम्बन्ध है अन्यथा स्व-अवचेतन जीव तो केवल “जीवो जीवस्य भोजनम्”
को ही मूल मन्त्र समझते हैं | तो हम स्व-चेतन मनुष्य की बात पर आते हैं | ऐसे
मनुष्य का आहार (Food), व्यवहार (Behave), विचार (Thoughts) आदि सभी स्व-अवचेतन मनुष्य से भिन्न होते
हैं क्योंकि वह ज्ञानपूर्वक जीवन जीता है | वह आहार करते समय यह ध्यान रखता है कि किसी
जीव को इससे हानि न पहुंचे | आज जब मनुष्य अहिंसा को छोड़ आहार के लिए हिंसक हो गया
है, तभी तो प्रकृति क्रंदन (Bawling/Weeping) कर रही है | आहार (Food) और अर्थ व्यवस्था
(Finance) के लिए हिंसा को प्रश्रय (Patronage) दिया जा रहा है जिससे प्राकृतिक
संतुलन बिगड़ रहा है | इस संतुलन को पुनर्स्थापित (Restore) करने का प्रयास प्रकृति
द्वारा किया जा रहा है | ताज़ा उदाहरण कोरोना महामारी के रूप में हमारे समक्ष है |
हम भयग्रस्त होकर जी रहे हैं | यही कारण
है कि हम स्वार्थ के कारण अपने जीवन को बचाने के लिए जीव हिंसा को बढ़ावा दे रहे
हैं | हम भयग्रस्त हैं तभी तो जंगल काटकर जीवों का आश्रय (Shelter) छीन रहे हैं |
जंगली जानवरों को हम अपना जीवन बचाने की आड़ में मार रहे हैं | याद रखिए, समष्टि में
एक का जीवन दूसरे के जीवन पर निर्भर रहता है, दूसरे की मृत्यु पर नहीं | सभी जीव मुक्त
जीवन जीयेंगे तभी मनुष्य मुक्त रहकर जी सकेगा |
आप सांप के स्वाभाविक आहार नहीं है, फिर
सांप को देखते ही उसे मारने को क्यों दौड़ पड़ते हो ? क्या उसे अपना प्राकृतिक जीवन
जीने का अधिकार नहीं है ? आप उसे मारने का प्रयास करोगे तो वह अपना जीवन बचाने के
लिए आपको डसेगा ही | मच्छर आपको काटता है क्योंकि आपका खून उसका स्वाभाविक भोजन है
| वह स्व-अवचेतन है, वह नहीं समझता कि उसके द्वारा काटे जाने से आप बीमार पड़ सकते
हैं | वह तो स्व-अवचेतन है परन्तु आप तो स्व-चेतन हैं, आप उस छोटे से मच्छर की जान
के पीछे क्यों पड़े हो ? आप उसे मारकर अपने जीवन को बचाने का प्रयास न करें बल्कि
उसके द्वारा काटे जाने से बचने का प्रयास करें क्योंकि आप स्व-चेतन हैं, स्व-अवचेतन
नहीं |
स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय
मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम (National malaria eradication programme, NMEP) चलाया गया था, जिसका नारा (Slogan) था, “मच्छर नहीं तो मलेरिया नहीं
|” उस समय मच्छरों को समाप्त करने के लिए घर-घर DDT का छिडकाव किया जाता था | मच्छरों
ने कुछ ही वर्षों में DDT के प्रभाव के विरुद्ध शक्ति विकसित कर ली | इसमें
प्रकृति का योगदान था | कई वर्ष यह कार्यक्रम चला परंतु मलेरिया के रोगी घटने के
स्थान पर बढ़ते चले गए | सरकार समझ गयी थी कि मच्छरों को समूल नष्ट करना संभव नहीं
है | थक हार कर सरकार ने इस कार्यक्रम को मलेरिया उन्मूलन के स्थान पर मलेरिया
नियंत्रण में परिवर्तित कर दिया | इस कार्यक्रम का नाम रखा- राष्ट्रीय मलेरिया
नियंत्रण कार्यक्रम (National malaria control programme, NMCP) और इसका नारा (Slogan) है, “मच्छर रहेगा पर मलेरिया नहीं |” यह
कार्यक्रम भी दम तोड़ चूका है | प्रकृति के आगे किसी का वश नहीं, आज मच्छर भी है और
मलेरिया भी |
मेरे कहने का अर्थ है कि प्रत्येक
प्राणी की रक्षा प्रकृति स्वयं करती है क्योंकि प्रत्येक जीव का जीवन सब जीवों के
जीवन के साथ बंधा हुआ है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment