जीवो जीवस्य जीवनम्-15
अभी कोरोना महामारी से वही क्षेत्र
कम प्रभावित हुआ है जहाँ पर मच्छर के काटने से मलेरिया रोग होता है | यह किसी
आश्चर्य से कम नहीं है कि मच्छर का काटकर मलेरिया फैलाना आपको कोरोना जैसे जानलेवा
रोग से मुक्त भी रख सकता है | हालाँकि यह मनुष्य की कोरोना से रक्षा होने में मलेरिया का
अप्रत्यक्ष योगदान है | हो सकता है आपको मेरा ऐसा कहना अतिशयोक्ति पूर्ण प्रतीत हो
परन्तु आप इस बात पर अवश्य गौर करें कि संयुक्त राज्य अमेरिका मच्छर नियन्त्रित और
मलेरिया मुक्त देश है और वहां कोरोना महामारी अपने उग्र रूप का प्रदर्शन कर रही है
| हमारे प्रधानमंत्री जी से वहां के राष्ट्रपति ने मलेरिया की दवाइयां भेजने का
आग्रह किया है क्योंकि वहां मलेरिया रोधी दवा (HCQ) का निर्माण तक नहीं होता है | अतीत
में अमेरिका द्वारा अतिरेक में लिया गे यह निर्णय उसे आज इस मोड़ पर ले आया है | अतः
हमें सदैव याद रखना है कि प्रत्येक जीव का जीवन प्रत्यक्ष (Direct) अथवा परोक्ष (Indirect)
रूप से किसी अन्य जीव के लिए जीवन होता है |
प्रश्न यही उठता है कि
अमेरिका जैसा विकसित देश क्यों कोरोना महामारी से सर्वाधिक त्रस्त देश बनने जा रहा
है ? जिस देश ने अपने सामरिक हथियारों के बल से विश्व के प्रायः सभी देशों को अपने
संकेतों पर नचाया हो और अभी भी नचा रहा है, वह कोरोना जैसे छोटे से विषाणु के
सामने पस्त कैसे हो रहा है ? वास्तव में यह विचारणीय विषय है | प्रश्न अगर
संसाधनों का हो तो भी जैसे उच्च स्तर के संसाधन अमेरिका के पास है वैसे संसाधन तो
किसी अन्य देश के पास नहीं है | उसके पास संसार की सर्वोत्तम चिकित्सा सेवा है,
चिकित्सा के काम आने वाले बेहतरीन उपकरण है, संसार के चुने हुए सिद्ध चिकित्सक हैं,
फिर भी आज वह इस महामारी के सामने घुटने क्यों टेक रहा है ?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर वैज्ञानिक
दृष्टि से नहीं मिल सकते, केवल सनातन दर्शन ही उन प्रश्नों का उत्तर दे सकता है |
याद है न आपको 6 और 9 अगस्त 1945, जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगर | क्या गलती
थी, वहां के निरीह प्राणियों की | क्यों किया गया वहां आणविक हमला ? केवल दूसरे विश्वयुद्ध
में अपना वर्चस्व स्थापित करने का उद्देश्य था अमेरिका का | उस समय जापान ने
तत्काल घुटने टेक दिए, अमेरिका के सामने | आज, आज अमेरिका प्रकृति के सामने घुटने
टेक रहा है | सोचिये ! ऐसे में अमेरिका बड़ा हुआ या परमात्मा की प्रकृति ?
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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