शरीर-5
इन सभी पांचों कोषों अर्थात तीनों
शरीरों के भीतर आत्मा (Spirit) रहती है | वह एक शरीर से दूसरे शरीर के मध्य सदैव
भ्रमण करती रहती है | हमारे शरीर के भीतर निवास करने वाली आत्मा ही वास्तव में
परमात्मा है | यही आत्मा जब कारण शरीर को ही स्वयं का होना मान लेती है तब कारण
शरीर को अनुभव होने वाला सुख-दुःख उसे अपने में अनुभव होना लगता है | सुख-दुःख का यह अनुभव मनुष्य में राग-द्वेष
उत्पन्न करता है, जो उसके विभिन्न योनियों में भटकने का मुख्य
कारण बनता है | ऐसा केवल मनुज शरीर के साथ ही होना सम्भव होता है अन्य जीवों के
साथ नहीं | इसीलिए मनुष्य को इस कारण शरीर (Causal body) के कारण ही विभिन्न
प्राणी शरीरों में जन्म लेते हुए अनन्त काल तक भटकना पड़ता है |
स्थूल शरीर के बारे में तो हम जानते हैं कि यह
पञ्च भौतिक देह है | यह शरीर आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी, इन पाँच भौतिक तत्वों
से बना है | अब प्रश्न उठता है कि ये ’कारण-शरीर’ और ’सूक्ष्म-शरीर’ कैसे बनते हैं
और आत्मा के साथ इनका सम्बन्ध कब तक रहता है ?
पूर्व में स्पष्ट किया जा चूका है कि कारण
शरीर ”प्रकृति” का ही नाम है | प्रकृति त्रिगुणी होती है। सत्त्व गुण, रजोगुण और तमोगुण, इन तीनों के समुदाय का नाम ही प्रकृति
है | इन तीनों गुणों के माध्यम से ही परमात्मा और प्रकृति अपना खेल खेलते हैं |
कहने का अर्थ है कि इस त्रिगुणी प्रकृति (Trident nature) का नाम ही ‘कारण-शरीर’
है |
उस
प्रकृति रुपी कारण शरीर से दूसरा जो शरीर उत्पन्न हुआ, उसका नाम ‘सूक्ष्म शरीर’ है | आपने
शरीर पर कुर्ता/कपड़ा (Cloth) पहन रखा है | इसका कारण है धागा (Thread) और धागे का
कारण है- रूई (Cotton) | इस प्रकार स्थूल रुप से देखें तो रूई, धागा और कुर्ता कुल मिलकर ये तीन वस्तु
हो गयी | कुर्ता, धागा और रूई की तरह ऐसे ही हमारे ये
तीन शरीर हैं- स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर | स्थूल
शरीर है कुर्ता, सूक्ष्म शरीर है धागा और कारण शरीर है-
रूई |
क्रमशः
प्रस्तुति-
डॉ. प्रकाश काछवाल
||
हरिः शरणम् ||
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