जीवो जीवस्य जीवनम्-4
अब आते हैं, मनुष्य के आहार की बात पर
| हाथ वाले जीव बिना हाथ वाले अर्थात अन्य पशु अथवा वनस्पति उनके आहार के पदार्थ
हैं | हाथ वाले जीवों में केवल मनुष्य आता है | परन्तु क्या मनुष्य के पास आहार के
लिए वनस्पतियों से मिलने वाले शाकाहारी भोजन के अतिरिक्त मांस भक्षण ही एक मात्र विकल्प
है ? यहाँ आकर ज्ञानपूर्वक जीने और अज्ञान में जीने की बात महत्वपूर्ण हो जाती है |
ज्ञानपूर्वक जीने वाला जीव केवल मनुष्य ही हो सकता है अन्य कोई जीव नहीं |
ज्ञानपूर्वक जीने का अर्थ है होश पूर्ण जीवन | सभी जीवों में एक मात्र मनुष्य ही
ऐसा जीव है जो होश पूर्वक जी सकता है | ज्ञानपूर्वक जीने वाले मनुष्य के लिए
व्यष्टि चेतन के स्थान पर समष्टि चेतन अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है | वह फिर सभी
जीवों में एक उसी चेतना के दर्शन करता है, जिससे वह स्वयं भी चैतन्य है | ऐसे में उसके
द्वारा किसी अन्य चर जीव का भक्षण करना असंभव हो जाता है | उच्च अवस्था को उपलब्ध
व्यक्ति तो शाकाहारी भोजन में भी केवल उन्हीं शाक-पात (Vegetables) को चुनता है,
जिसमें उस अचर जीव के जीवन को कम से कम क्षति पहुंचती हो |
हम आज आदि मानव नहीं है, अब हम
बौद्धिक क्षमता से ओतप्रोत मानव हैं | आदि मानव अपने आहार के लिए उस समय जीवों को
मारा करता होगा | आज हमारे समक्ष जीव हत्या के अतिरिक्त भी आहार के कई विकल्प हैं |
शाकाहार हमारे जीवन को भी सुरक्षित रखेगा और साथ ही साथ अन्य जीवों के जीवन को भी |
हमें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि किसी जीव को मारने से उसे उतनी ही पीड़ा होती
है जितनी पीड़ा हमारे शरीर को चोट लगने पर होती है | शरीर को लगी चोट की पीड़ा तो
फिर भी क्षीण होती है परन्तु जीवन लेने के लिए जो पीड़ा जीव को दी जाती है, उसकी केवल
कल्पना ही की जा सकती है |
कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि पेड़ पौधे,
शाक-पात भी तो जीव हैं | हाँ, वे भी जीव हैं उनको भी काटे जाने पर पीड़ा होती है |
इससे बचने के लिए हमारे शास्त्रों ने तो यहाँ तक कहा गया है कि पेड़ की पतियों और
फलों को खाने से जीव को कम से कम पीड़ा होती है | कम से कम इससे किसी जीव का जीवन तो
समाप्त नहीं होता | अतः शाकाहार में भी उन्हीं पदार्थों का आहार लिया जाये जिसमें
जीव हिंसा की संभावना न्यूनतम रहती हो | भगवान श्रीराम ने वनवास की अवधि में किसी जीव
को मरकर अपना आहार बनाया हो, ऐसा कहीं पर भी प्रमाण नहीं मिलता | उन्होंने तो कंद,
मूल फल खाकर ही 14 वर्ष बिताये थे |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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