जीवो जीवस्य जीवनम्-
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संतानोत्पति
के लिए दूसरे प्राणी पर निर्भर रहने का सबसे अच्छा उदाहरण है, मादा मच्छर (एनाफिलिज
प्रजाति) का, जिसके काटने से मनुष्य को मलेरिया नामक बीमारी होती है | न्रर मच्छर
कभी भी मनुष्य को नहीं काटता, वह तो पेड़-पौधों में रहता है और उनका रस पीकर ही
अपना जीवन चला लेता है | मादा मच्छर की प्रजनन क्षमता बिना मनुष्य के खून को पीये
सक्रिय नहीं होती और न ही उसके दिए अंडे परिपक्व होकर मच्छर में बदल सकते हैं | इस
प्रकार यह स्पष्ट है कि अगर एक भी मादा मच्छर को मनुष्य का रक्त न मिले तो मच्छर प्रजाति
का नामोनिशान समाप्त हो सकता है | आगे की कड़ियों में देखिये, मादा मच्छर का
मलेरिया फैलाना ही मनुष्य के जीवन को कोरोना नामक विषाणु से कैसे बचाता है ? अब
आते हैं अचर जीवों के जीवन के बारे में और जानने का प्रयास करते हैं कि उनका जीवन
कैसे दूसरे जीवों के जीवन पर अथवा प्रकृति पर निर्भर है ?
आहार के लिए –
प्रत्येक वनस्पति जैसे पेड़ पौधे,
शाक आदि सभी आहार के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर है | जल में पैदा होने वाली
कुमुदिनी पानी से अपना भोजन तत्व ग्रहण करते हुए सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में
भोजन बनाती है | पेड़-पौधे भूमि पर पड़े गोबर की खाद से जीवन-तत्व लेते हैं | फंफूद
(Fungus) किसी अन्य जीव के मृत शरीर के सड़ने के स्थान पर अथवा सड़ते पदार्थों पर अपना
जीवन प्रारम्भ करती है | वह अपना आहार उसी सड़े-गले शरीर से प्राप्त करती है |
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कई वनस्पति
भी मांसाहारी होती है | इनमें एक है, कलश पादप (Pitcher plant)| यह एक ऐसा पौधा है
जिसमें उसकी पत्तियां कलश के आकार की बन जाती है | पत्ती का अंतिम छोर कलश के
ढक्कन का रूप ले लेता है | जब कोई कीट उस कलश में प्रवेश करता है तब कलश का ढक्कन उसके
मुख को बंद कर देता है | कलश के अन्दर चूषक (Sucker) होते हैं जो कीट को गलाकर
उसका सारा रस चूस लेते हैं | इसी प्रकार एक मांसाहारी पौधा और होता है जिसकी
डालियाँ पास आये जीव को जकड लेती हैं और उसको अपना आहार बना लेती है | इस प्रकार
हम देखते हैं कि वनस्पति भी मांसाहारी हो सकती है | प्रायः वनस्पति पञ्च भौतिक
तत्वों के माध्यम से अपना भोजन स्वयं ही बना लेती है | पौधों की पत्तियों में क्लोरोफिल
नामक तत्व होता है | पौधे उस तत्व से, जड़ों से अवशोषित किये तत्व, वायु में
उपस्थित कार्बन डाई ऑक्साइड लेकर और सूर्य की रोशनी की उपस्थिति में आपने भोजन का
निर्माण कर लेते हैं |
स्वयं की रक्षा के
लिए –
प्राकृतिक रूप से पेड़-पौधे अपनी रक्षा
अपने शरीर पर कांटें उगाकर ही कर लेते हैं | कांटो से डरकर कोई पशु उस पेड़ पौधे के
पास नहीं फटकता | कई वनस्पति जहरीली भी होती हैं, उनके इस स्वभाव को जान समझकर कोई
जीव उसके पास फटकता तक नहीं है | इस प्रकार हम देखते हैं कि अचर जीव अपनी रक्षा के
लिए केवल प्रकृति पर ही निर्भर हैं |
पश्चिमी राजस्थान के बीकानेर रियासत
क्षेत्र में विश्नोई समाज द्वारा पेड़ों और हिरणों की रक्षा करने का संकल्प करना,
प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने में महत्वपूर्ण है | आज उस क्षेत्र में खेजड़ी को
काटना पाप समझा जाता है | उस मरू क्षेत्र में आपको हिरण बड़ी संख्या में देखने के
मिल जायेंगे | इस आन्दोलन की शुरुआत जम्भाजी के द्वारा हुई थी, जिनका मंदिर मुकाम नामक
गाँव में है | खेजड़ी को बचाने के लिए विश्नोई समाज की महिलाएं और पुरुष खेजड़ी से
लिपट जाया करते थे | इस आन्दोलन में कई पुरुष महिलाओं ने अपना बलिदान दिया था |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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