शरीर-4
आधुनिक शरीर विज्ञान तो भौतिक शरीर का
बाहर और भीतर से अवलोकन करके बता देता है कि बाहरी त्वचा (Skin) से लेकर भीतर
अस्थि (Bone) पर्यंत ही शरीर है | इस शरीर में कई अंग है, जो इसको सुचारु रूप से
अपना कार्य करते हुए जीवित रखे हुए है | शरीर की मृत्यु हो जाने के साथ ही शरीर
समाप्त हो जाता है | यह शरीर अपना कार्य सही प्रकार से करता रहे, इसके लिए यह
आवश्यक है कि इसके प्रत्येक अंग की उचित देखभाल की जाये और जहाँ पर इसकी प्रणाली
में कोई दोष दिखलाई पड़े, रसायनों (Chemicals-Drugs) अथवा शल्यक्रिया (Surgery) द्वारा
इसको सुधार (Repair) दिया जाये | विज्ञान भी भौतिक शरीर (Physical body) को एक
मशीन ही मानता है, उससे आगे भी शरीर के भीतर भी अन्य कई शरीर हो सकते हैं, इसका
ज्ञान अभी विज्ञान को नहीं है | इस शरीर की विस्तृत व्याख्या हमारे दर्शन-शास्त्रों
में जो वर्णित है, वह विलक्षण है |
हमारे पूर्वज इस शरीर के एक भाग को
भौतिक यंत्र अवश्य मानते थे, जिसे वे स्थूल शरीर कहा करते थे | इस शरीर के भीतर
उन्होंने उस समय भी झांकने का प्रयास किया था | भारतीय दर्शन शास्त्रियों ने सभी
प्राणियों के शरीर को पांच भागों में बांटा है | इन को पांच कोष कहा जाता है |
कहने का अर्थ है कि प्रत्येक प्राणी का शरीर पंच कोशिय होता है | बाहर से भीतर की
ओर अवस्थित ये पांच कोष निम्न प्रकार से हैं-
सबसे बाहर प्रथम कोष अन्नमय कोष (Grainful
sheath) होता है | यह कोष पांच भौतिक तत्वों से मिलकर बना हुआ है | ये पांच भौतिक तत्व
हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश | अन्नमय कोष को स्थूल
शरीर (Gross body) भी कहा जाता है | इस कोष के अन्दर दूसरा कोष होता है, प्राणमय कोष (Breathful Sheath), जिससे स्थूल शरीर को सुचारु रुप से
संचालन के लिए शक्ति मिलती है | प्राणमय कोष के अन्दर की ओर होता है, तीसरा मनोमय कोष (Mindful sheath) | हमारा मन इसी कोष
के अन्तर्गत आता है | मनोमय कोष के अन्दर चौथा कोष होता है, विज्ञानमय कोष (Scienceful sheath)| इस
कोष में हमारी बुद्धि निवास करती है | प्राणमय,
मनोमय और विज्ञानमय कोष मिलकर सूक्ष्म शरीर कहलाते हैं। सूक्ष्म शरीर को लिंग शरीर
(subtle body) भी कहा जाता है | विज्ञानमय कोष के भीतर अर्थात शरीर के सबसे भीतर अंतिम
और पांचवां कोष होता है, आनंदमय कोष (Blissful sheath) | यह कोष
ही प्रकृति है और ईश्वर भी | साथ ही साथ यह हमारा कारण शरीर (Causal body) भी है।
शरीर के इस कोष से प्राणी को सुख-दुःख की अनुभूति होती है।
क्रमशः
प्रस्तुति-
डॉ. प्रकाश काछवाल
||
हरिः शरणम् ||
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