Friday, August 11, 2017

गुरु के सूत्र - 6

गुरु के सूत्र – 6
             गुरु आपको मुक्ति के द्वार तक ले जा सकता है, परन्तु मुक्ति पाने की इच्छा आपकी स्वयं की होनी चाहिए | मुझे आज तक कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला है, जिसने परमात्मा को पाने की कामना की हो, प्रयास भी बड़े मनोयोग से किये हों और उसे परमात्मा न मिल पाए हों | हाँ, शत-प्रतिशत सत्य कह रहा हूँ मैं | परन्तु दुर्भाग्य है कि आजकल परमात्मा की कामना करना और उसको प्राप्त करने का प्रयास केवल जिव्हा तक का विषय बनकर रह गया है, वह भीतर की कामना नहीं बन सका है | जिस दिन व्यक्ति के भीतर परमात्मा को पाने की तीव्र कामना जगेगी, उस दिन गुरु भी मिल जायेंगे और परमात्मा भी | हरिः शरणम् आश्रम, हरिद्वार के आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा कहते हैं कि मात्र क्रिया में उलझकर रह जाने से परमात्मा के द्वार नहीं खुलेंगे | क्रिया आपको भ्रम में रखती है कि आप गोविन्द की यात्रा पर है | अगर राम-राम कहने और जपने से ही मुक्त हुआ जा सकता तो पिंजरे में बंद रहे कई तोते आज तक मुक्त हो चुके होते | नाम-जप को प्रथमतः उपासना बनाना होगा, फिर विवेक जाग्रत करना होगा तभी आपका नाम-जप प्रभावशाली होगा | राम-राम की ध्वनि आपके भीतर तक पहुंचनी चाहिए, केवल जिव्हा से बाहर आने मात्र से राम नहीं मिल सकेंगे |
                  जिस दिन नाम-सुमिरन आपके भीतर तक, आपके अंतर्मन को छू लेगा, आपके मन में परमात्मा को पाने की कामना अंकुरित हो जाएगी | इस अंकुरण को खाद-पानी देगा, गुरु | इस प्रकार के खाद-पानी को ही ‘गुरु के सूत्र’ कहते हैं | मैं जानता हूँ कि आपके भीतर भी यह अंकुर प्रस्फुटित हो चूका है | आइये ! इस अंकुरण को एक स्वस्थ-सुन्दर पेड़ बनाने के लिए गुरु के पास चलते हैं, गुरु से प्रथम सूत्र जानने के लिए |
   1.संतुष्ट जीवन –
                    मनुष्य का जीवन अभाव पूर्ण जीवन न हो | सद्गुरु कहते हैं कि आज मनुष्य अपनी कामनाओं और वासनाओं में इस प्रकार लिप्त हो गया है कि वह अपने जीवन में प्रतिपल कुछ न कुछ अभाव का ही अनुभव करता रहता है | संतुष्ट जीवन आध्यात्मिक जीवन की आधारशिला है | अभाव पूर्ण जीवन सदैव मन को उद्वेलित किये रहता है जबकि संतुष्टि मन को स्थिरता प्रदान करती है | संतुष्टि का अर्थ है जो मिला हुआ है उसमें ही प्रसन्न रहना और जो नहीं मिला उसकी कभी भी चाहना न करना | जीवन में सांसारिक भोग-विलास से आज तक कोई संतुष्ट नहीं हो सका है | संतोष भीतर से उपजता है, बाहर से नहीं | जिस दिन आप प्रत्येक मिलने वाली चीज को परमात्मा प्रदत्त प्रसाद मानने लगेंगे, संतोष आपके द्वार पर आ खड़ा होगा |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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