गुरु के सूत्र –
19
चौथा सूत्र –
रसमय जीवन (कल से आगे) -
बहुत ही महत्वपूर्ण भाव-रस, जहाँ कोई किसी से भिन्न नहीं, सभी अपने, कोई भी पराया नहीं | चोर और साधू, पशु व मानव सभी में परमात्मा को देखना
| भाव-रस हमें परमात्मा की और ले जाता है | महान कवि श्री मैथिली शरण गुप्त ने कहा
भी है-
जो भरा नहीं है
भावों से , बहती जिसमें रसधार नहीं |
वह ह्रदय नहीं
है पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं ||
भाव-रस दया और करुणा का रस है |
इस संसार में भोग-रस से निवृत हो व्यक्ति शांति को उपलब्ध होता है | शांति प्राप्त
करने के उपरांत उसमें प्रत्येक प्राणी के प्रति दया और करुणा का भाव जगता है | इसीलिए
इस भाव-रस को भावना प्रधान कहा गया है | गोविन्द की यात्रा के लिए मनुष्य का भाव-प्रधान
होना आवश्यक है | भाव, भोग से एकदम विपरीत अवस्था है और प्रेम से पूर्व की अवस्था
है | भोग-रस से प्रेम-रस के मार्ग पर अग्रसर होने पर मध्य में भाव-रस की उपलब्धि
होती है |
महान योगाचार्य महर्षि
पतंजलि के जीवन का एक वृतांत है | तत्कालीन राजा पुष्पराज ने एक बार अपने राजमहल में
एक माह तक चलने वाले यज्ञ का आयोजन किया | उस यज्ञ में उन्होंने महर्षि पतंजलि को भी
आमंत्रित किया | महर्षि ने पुष्पराज को स्पष्ट किया कि इतनी दीर्घ अवधि तक गुरुकुल
छोड़ कर जाना संभव नहीं है क्योंकि इससे मेरे एक सौ विद्यार्थियों की शिक्षा अवरुद्ध
हो जाएगी | राजा पुष्पराज ने कहा कि मैं आपके
साथ-साथ सभी एक सौ विद्यार्थियों के आवास, भोजन और शिक्षा की व्यवस्था कर देता हूँ
| वहां आप यज्ञ में भी भाग ले सकते हैं और अपने शिष्यों को विद्याध्ययन भी करा सकते
हैं | राजा पुष्पराज के आग्रह को आखिर महर्षि टाल नहीं सके और अपने शिष्यों सहित राजा
के मेहमान बन गए |
प्रातःकाल महर्षि पतंजलि यज्ञादि
कार्यक्रमों में भाग लेते और तत्पश्चात गुरुकुल की तरह ही अपने शिष्यों को विद्याध्ययन
कराते | इस प्रकार एक पक्ष बीत गया | एक दिन राजा ने महल की नाट्यशाला में एक भव्य
नृत्य और संगीत के कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें राज्य की सुन्दरतम प्रसिद्ध तीन
नृत्यांगनाओं को नृत्य करने के लिए आमंत्रित किया गया था | यह कार्यक्रम सांय काल को
प्रारम्भ होकर मध्य रात्रि तक चलना था | राजा पुष्पराज ने महर्षि पतंजलि को भी इस नृत्य-संगीत
कार्यक्रम को देखने के लिए निमंत्रित किया | महर्षि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ पाउँगा,
अगर निमंत्रित करना है तो मेरे साथ मेरे सभी एक सौ शिष्यों को भी निमंत्रित करना होगा
| राजा पुष्पराज ने सभी को आमंत्रण दिया और उनके बैठने की रंगशाला में उचित व्यवस्था
कर दी |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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