गुरु के सूत्र –
11
तीसरा सूत्र-
चैतन्य जीवन (कल से आगे)
पशु केवल भयग्रस्त रहते हुए आहार, निद्रा
और मैथुन की क्रियाओं में ही सदैव रत रहता है | आज इस आधुनिक भौतिक युग में मनुष्य
भी इन चारों अर्थात आहार, निद्रा, भय और मैथुन के चक्र व्यूह से बाहर कहाँ निकल पाया
है ? इसे एक प्रकार से मूर्छा का जीवन नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ? एक पशु भी यांत्रिक
जीवन जीता है और आज मनुष्य भी एक यांत्रिक जीवन जी रहा है | मनुष्य के लिए आवश्यक है
कि वह अपना जीवन होशपूर्वक जिए | उसे स्वयं का ज्ञान होना आवश्यक है तभी उसके जीवन
को होश वाला जीवन कहा जा सकता है | होशपूर्ण जीवन ही मानव प्रजाति की पशुजीवन पर श्रेष्ठता
सिद्ध करता है |
आप प्रातः उठकर केवल रास्ते में
खुलने वाली किसी खिड़की अथवा दरवाजे के पास खड़े हो जाइये और फिर वहां से आते-जाते हुए
लोगों का गहराई के साथ निरीक्षण करें | आपको पता चल जायेगा कि प्रायः सभी व्यक्ति एक
प्रकार की मूर्छा में यांत्रिक जीवन जी रहे हैं | उद्देश्यहीन होकर इधर उधर भटक रहे
हैं | जीवन का उद्देश्य केवल खान-पीना, सोना, भयग्रस्त रहना और संतानोत्पति ही रह गया
है | अपने इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के
लिए आज का मनुष्य अपना हीरे जैसा अनमोल जीवन गवां रहा है |
जिसका मस्तिष्क सक्रिय हो, जो अपने दैनिक कार्य सुगमता
पूर्वक कर रहा हो, केवल इतने को ही नहीं कहा
जा सकता कि व्यक्ति होश पूर्वक जी रहा है | आज में जीना होशपूर्वक जीना है | आप जो
दैनिक कार्य कर रहे हैं, क्या वह भी आप होशपूर्वक कर रहे हैं ? मैं कहता हूँ कि,
नहीं | आपको एक आदत पड़ चुकी है, वह कार्य करने की | आपकी यह आदत बन चुकी है, एक ही
प्रकार के कार्य को नियमित रूप से करने के कारण | याद कीजिये वह दिन, जब आप जीवन
में पहली बार पाठशाला गए थे | उस दिन आप होश पूर्वक गए थे, पाठशाला | ज्यों ज्यों
आप बड़े होते गए, आपको शाला जाने की आदत बन गयी और आप यंत्रवत शाला जाने लगे | इसी
प्रकार जब आपके मन में परमात्मा का विचार आया और आपने प्रारम्भिक स्तर पर उनकी
पूजा-अर्चना प्रारम्भ की, तब आपको कितना आनंद मिला था ? क्या वह आनंद आज भी उस
प्रकार की पूजा में मिल रहा है ? नहीं , न | कभी सोचा कि वह आनंद कहाँ चला गया ?
प्रथम बार आपने वह पूजा होश में की थी और अब वही पूजा आप एक प्रकार की बेहोशी में
कर रहे हो |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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