Wednesday, August 30, 2017

गुरु के सूत्र - 25

गुरु के सूत्र – 25
चौथा सूत्र – रसमय जीवन (कल से आगे) –
               यह मात्र एक संयोग है कि जिस विषय पर हम अभी चर्चा कर रहे हैं, उसी समय न्यायलय के आये एक  निर्णय ने थोडा सा लीक से हटकर लिखने को मजबूर कर दिया | आज गंभीरता से सोचता हूँ तो पाता हूँ कि क्या ऐसे किसी व्यक्ति को जो कि धर्म की आड़ में पाप कर रहा हो, संत कहा जा सकता है ? विरासत में मिले इस पद की गरिमा को उसने तार-तार कर दिया है | सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि ऐसा सब कुछ सनातन धर्म की आड़ में हो रहा था | भारत की संस्कृति ऐसी कभी भी नहीं रही है और न ही हमारा धर्म ऐसे किसी पाप-कर्म को पोषित करता है | जहाँ जन्म से ही नारी की महानता का बखान करते हुए उसका मातृ-स्वरुप हमें घूंटी के साथ पिलाया जाता था, उसमें कहीं न कहीं तो किसी विकृति ने अवश्य ही प्रवेश किया है, जो आज सम्पूर्ण युवा पीढ़ी को भ्रमित कर रही है | आज हमारे समक्ष ऐसा समय आकर उपस्थित हो गया है जो हमें यह सोचने को विवश कर रहा है कि हम विचार करें कि हमसे कहाँ गलती हुई है ? गलती अवश्य ही हुई है अन्यथा ऐसा परिणाम नहीं मिलता | समय की मांग को स्वीकार करते हुए यह आवश्यक है कि हम इस बात पर चिंतन करें और अपने मानवीय मूल्यों को पुनः उत्कर्ष पर पहुँचाने का प्रयास करें |  आइये ! अब पुनः भाव रस से प्रेम-रस की और चलते हैं |
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित हुआ न कोय |
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||
          यह कबीर का एक प्रसिद्ध दोहा है | कबीर कहते हैं कि सारा संसार पुस्तकों में ज्ञान खोज रहा है परन्तु शास्त्र पढ़कर भी आज तक कोई ज्ञान को उपलब्ध नहीं हो सका है, पंडित नहीं बन सका है | परन्तु जिसने ‘प्रेम’ शब्द के ढाई अक्षर पढ़ लिए, जो प्रेम-रस में डूब गया वह तत्काल ही पंडित हो गया अर्थात ज्ञान को उपलब्ध हो गया | आत्म-ज्ञान हो जाना ही परमात्मा को पा लेना है |
                    आत्म-ज्ञान होते ही सभी में परमात्मा नज़र आने लगते हैं | प्रेम और परमात्मा में कोई भेद नहीं है | कबीर कहते हैं –
सुन्न मरे अजपा मरे, अनहद ही मर जाय |
रामस्नेही ना मरे, कहत कबीर बुझाय ||
                    कबीर कहते हैं कि जो परमात्मा को शून्य कहते हैं, जो उसे अजपा कहते हैं और जो उसे अनंत मानते हैं, वे सभी मरेंगे क्योंकि वे प्रेम-भाव में अभी डूबे नहीं हैं | जो राम का प्रिय है और राम से प्रेम करता है, वह कभी नहीं मर सकता | जो सभी से प्रेम-भाव रखता है, वह सभी प्राणियों में परमात्मा को देखता है अर्थात राम को ही देखता है | भला, सभी प्राणियों से प्रेम करने वाला कभी मर सकता है ? यहाँ मरने का अर्थ केवल शरीर के मरने और बार-बार जन्म लेने से नहीं है | जो संसार में सब को राम समझता है और सबसे प्रेम करता है वह जीते जी ही मुक्त है, उसका पुनर्जन्म नहीं हो सकता | वह स्वयं ही परमात्मा हो जाता है और परमात्मा कभी मरता नहीं है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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