गुरु के सूत्र -14
अब आते हैं गुरु के अंतिम और
अतिमहत्वपूर्ण सूत्र पर | यह अंतिम सूत्र प्रत्येक व्यक्ति के लिए सर्वाधिक
महत्त्व का है क्योंकि आनंद की अवस्था को उपलब्ध करने के लिए यह सूत्र ही मुख्य आधार
बनता है | यह सूत्र है – जीवन रसमय हो, नीरस नहीं | इस जीवन को रसमय बनाकर तभी जिया
जा सकता है, जब आप संसार की वास्तविकता को समझ लें | जब आप समझ जाते हैं कि इस
संसार में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह सब कुछ एक प्रपंच के अतिरिक्त कुछ भी
नहीं है | आज आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा ने अपने शाश्वत सूत्र में लिखा है उसका
भावार्थ भी यही है कि हम इस संसार की माया में उलझकर अपनी सरसता को खो बैठे हैं |
हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि जादूगर अपने खेल में साधारण कागज को जलाकर सौ रुपये
के नोट में कभी भी नहीं बदल सकता | हम तो उस जादूगर के खेल को ही वास्तविकता समझ
बैठते हैं, जब कि वह हमारे देखने की क्षमता को केवल मात्र भ्रमित ही करता है, जो कुछ
भी हमें दिखता है, वास्तव में वैसा होता नहीं है | जो इस खेल को समझ जाता है, वह
फिर इस खेल में नहीं उलझता और अपने जीवन को रसमय बना लेता है | आइये, गुरु के इस
महत्वपूर्ण सूत्र ‘रसमय जीवन’ पर विचार करते हैं |
4. रसमय जीवन –
जीवन रस से भरा हो | रसपूर्ण जीवन
ही मनुष्य और पशु के जीवन में अंतर करता है | भला, शुष्क जीवन भी कोई जीवन होता है
| रस से परिपूर्ण जीवन मनुष्य को सरलता से परमात्मा की ओर ले जाता है | जीवन में उपलब्ध
रसों के बारे में भी हमें ज्ञान होना आवश्यक है क्योंकि मनुष्य के जीवन में सभी रसों
का महत्वपूर्ण स्थान है | वैसे कुल रस नौ हैं परन्तु वास्तव में देखा जाये तो मनुष्य
के जीवन में निम्न चार प्रकार के रस महत्वपूर्ण
स्थान रखते हैं | भोग-रस, शांत-रस,भाव रस और प्रेम-रस | इन रसों के एक प्रकार के रस
से क्रमश दूसरे प्रकार के रस पर स्थानांतरित होते जाना ही, गुरु से गोविन्द के
रास्ते पर आगे बढ़ते जाना है | आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा कहते हैं कि संसार
में सभी मनुष्य भोगों में डूबे हुए हैं | जब तक वे उन भोगों से अपना पिंड छुड़ाकर
शांत नहीं हो जायेंगे तब तक परमात्मा के मार्ग पर प्रगति नहीं हो सकती | तो आइये !
चलते हैं, प्रत्येक रस को अल्प रूप से जानने के लिए तथा एक रस से दूसरे रस पर जाने
के रास्ते को पहचानने के लिए |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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