गुरु के सूत्र – 3
सर्वप्रथम हम सूत के अनुसार इस ‘सूत्र’ की भूमिका पर विचार
करते हैं | यह सूत अथवा सूत्र किन्हीं दो या अधिक वस्तुओं अथवा व्यक्तियों को आपस
में बांधने में प्रयुक्त किया जाता है | जैसे रक्षा-सूत्र, मंगल-सूत्र आदि | गुरु
के सम्बन्ध में इस सूत्र की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है | इसके लिए हमें अपने बचपन
में एक बार झांकना होगा | आधुनिक युग में बच्चों के द्वारा खेल-खेल में कुछ सीखने
के तरीके एक दम बदल गए हैं | हम अपने बचपन में दादी-मां की कहानियों से, मित्रों
के साथ खेल कर अथवा खेल दिखाने वालों के खेल देखकर ही बहुत कुछ सीख समझ लेते थे |
राजस्थान में कठपुतली का खेल प्रसिद्ध है | उदयपुर के राजस्थान कठपुतली कला केंद्र
में इस खेल का प्रदर्शन अभी भी होता है | हमारे बचपन में कठपुतली का खेल दिखाने वाले
गली मोहल्लों में आया करते थे | उस समर अमरसिंह राठौड़ नाम से कठपुतली का खेल बड़ा
प्रसिद्ध था | इस खेल में परदे के आगे लकड़ी की बनी पुतलियाँ तो परदे के सामने रहा
करती हैं और परदे के पीछे होता है इनको नचाने वाला, जिसे सूत्रधार कहा जाता है |
प्रत्येक कठपुतली से चार सूत्र अर्थात धागे बंधे होते हैं, जो दूसरे सिरे से
सूत्रधार की अँगुलियों से बंधे होते हैं | इस प्रकार दो हाथों से वह दो कठपुतलियों
को एक साथ नचा सकता है |
खेल प्रारम्भ होता है और
परदे के पीछे खड़ा सूत्रधार अपनी अँगुलियों के इशारों से दो कठपुतलियों को नचाते हुए
खेल को प्रारम्भ करता है | खेल के चरम बिंदु पर पहुँच कर वह दो कठपुतलियों का आपस
में युद्ध करना तक दिखा देता है | प्रायः रात का समय होता था, उस समय अल्प प्रकाश
में ये सूत्र हमें दिखाई नहीं देते थे | हम उस खेल का बड़ा आनंद उठाते थे | इसी
प्रकार गुरु के हाथों में भी हमें अपने सांसारिक सूत्रों को सौंप देना होता है |
अब जैसे गुरु हमें नचाना चाहे हमें नचा सकता है | बिना गुरु के हाथों अपने सूत्र
सौंपें ज्ञान प्राप्त करना असंभव है | कठपुतली के खेल में जैसे महत्वपूर्ण भूमिका
सूत्रधार की होती है वैसे ही ज्ञान को आत्मसात करने में सूत्रधार की भूमिका में
गुरु होता है | अतः आवश्यक है कि गुरु को सर्वप्रथम हम अपने सभी सूत्र सौंप दें और
फिर उनके संकेतों का हम अनुगमन करें |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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