Thursday, August 17, 2017

गुरु के सूत्र - 12

गुरु के सूत्र – 12
तीसरा सूत्र – चैतन्य जीवन (कल से आगे)
               क्या बेहोशी में भी पूजा की जा सकती है ? हाँ, हो सकती है क्योंकि आज आप पूजा करते समय, परमात्मा से प्रार्थना करते समय  साथ में अतिरिक्त कार्य भी कर रहे होते हो | इसी को बेहोशी में पूजा करना कहते हैं | ऐसी पूजा अर्थहीन पूजा है, निरर्थक प्रार्थना है | जब आप परमात्मा का ध्यान कर रहे हो, आपके बाहर भीतर सब जगह, परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ भी नज़र नहीं आना चाहिए | जो कुछ भी आप उच्चारित कर रहे हो, आपके कान केवल उसे ही सुनने चाहिए, दृष्टि उस समय केवल परमात्मा पर होनी चाहिए, गंध केवल उसी की महसूस होनी चाहिए | कहने का अर्थ यह है कि सभी इन्द्रियां और मन उसी कार्य में लगा होना चाहिए जिसको वर्तमान में आप कर रहे हो, इसी को होशपूर्वक जीना कहते हैं |
                हम बचपन में नानी के घर जाया करते थे | मेरी बड़ी नानी सुबह शाम भगवान की आरती किया करती थी | आरती करते समय वह घर का मुख्य द्वार खोलकर रखती थी | वह पूजा घर में दीपक जलाती और सस्वर आरती बोलती- “ॐ जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे ----“| एक दिन मैंने देखा कि आरती के मध्य में ही गली से एक श्वान घर के मुख्य द्वार से घर में प्रवेश कर रहा है | नानी ने आरती गाते हुए भी उसे घर में प्रवेश करते देख लिया | आरती को बीच में ही छोड़ वह बोल पड़ी-‘दुर्र, दुर्र’ अर्थात वह उस श्वान को बाहर निकल जाने के लिए उसे दुत्कार रही थी | इस समय उनका मस्तिष्क तो कार्य कर रहा था क्योंकि उन्होंने श्वान को अंदर आते देख लिया था परन्तु क्या उनका ध्यान उस समय परमात्मा से की जा रही प्रार्थना में था ? नहीं, अगर उनका ध्यान प्रार्थना में होता तो उसे घर में प्रवेश करते हुए भी परमात्मा ही नज़र आते, श्वान नहीं | उनका ध्यान परमात्मा पर न होकर घर में हो रही गतिविधियों पर था | जो कार्य आप कर रहे हो, उसमें अगर आपका ध्यान नहीं है तो वह कार्य बेहोशी में ही कर रहे हो |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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