गुरु के सूत्र -5
आइये ! आगे बढ़ते हैं और जानने का प्रयास करते
हैं की ‘गुरु के सूत्र’ हमारे लिए कैसे उपयोगी हैं |
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | वह इस संसार में समाज बनाकर रहता है | सभी यह बात
कहते हैं कि समाज व परिवार उसको बांधते हैं | दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि
संसार हमें बांधता है | नहीं, यह कहना असत्य है कि संसार हमें बांधता है, संसार हमें
बांधता नहीं है बल्कि हम संसार के साथ बंध जाते हैं | स्वेच्छा से हम संसार, समाज और
परिवार के साथ बंधे हुए हैं, किसी ने हमें बांध नहीं रखा है | हम जब चाहें ये बंधन
तोड़कर मुक्त हो सकते हैं | परन्तु क्या करें ? मुक्ति की कामना मन में उठती ही तो नहीं
है | जब मुक्त होने की कामना हमारे भीतर जन्म लेगी, हम स्वयं आगे की यात्रा की तैयारी
करने में व्यस्त हो जायेंगे | यह यात्रा गुरु के सानिध्य से प्रारम्भ होती है, जो गोविन्द
को प्राप्त कर समाप्त हो जाती है |
ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय स्वामी
रामसुखदासजी महाराज से एक बार एक व्यक्ति ने पूछा कि आप कहते हैं कि परमात्मा हमें
मीठे लगें, परन्तु वे हमें मीठे कैसे और कब लगेंगे ? स्वामीजी ने तुरंत ही एक
वाक्य में बहुत ही शानदार उत्तर दिया कि – ‘जब आपको संसार खारा लगने लगेगा |’ जब संसार
से मन उचटने लगे तब हमें समझ लेना होगा कि परमात्मा को पाने का समय आ गया है | जब संसार
खारा लगने लगता है, तब परमात्मा के प्रति मन में प्रेम उपजता है | मन व्याकुल हो उठता
है, उस गोविन्द को पाने के लिए, जो कि मानव जीवन का एक मात्र लक्ष्य है | गोविन्द को
पाना सबसे सरल भी है और अत्यंत दुष्कर भी | दुष्कर तो इसलिए क्योंकि संसार हमें सबसे
प्यारा लगता है | उसे हम छोडना ही नहीं चाहते | जब संसार से विमुख होने लगते हैं तब
गोविन्द को पाना गुरु सरल बना देता है | इसीलिए गुरु हमारे आध्यात्मिक जीवन के लिए
आवश्यक है | गुरु हमें तैयार करता है, इस यात्रा के लिए | गुरु हमें संसार में रहते
हुए भी तैयारी के लिए इस जीवन में कुछ सूत्र देता है | यह सूत्र मैं आपके साथ साझा
कर रहा हूँ | हो सकता है कि कुछ गुरु अपने द्वारा दिए जाने वाले सूत्रों में कुछ शाब्दिक
परिवर्तन कर देते हों परन्तु सभी का उद्देश्य एक ही रहता है – शिष्य के आत्म-ज्ञान
के लिए मार्ग प्रशस्त करना |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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