Friday, August 18, 2017

गुरु के सूत्र – 13

गुरु के सूत्र – 13
तीसरा सूत्र – चैतन्य जीवन (कल से आगे)
                         हम आज जी रहे हैं परन्तु भीतर विचार चल रहे हैं कल के | या तो हम बीते हुए कल पर विचार कर रहे होते हैं अथवा आनेवाले कल की कोई योजना बना रहे होते है | यह होशपूर्वक जीना नहीं है क्योंकि जिस समय में आप जी रहे हो, बह समाप्त होता जा रहा है | ध्यान रहे, बीता हुआ कल पुनः नहीं आता और न ही आने वाला कल कभी आएगा | परन्तु आज सदैव ही आज बना रहेगा, अतः जीना है तो आज में जियें, दोनों में से किसी भी एक कल में नहीं | आज में जीना ही होशपूर्वक जीना है | आज में रहते हुए किसी भी कल के बारे में सोचना कल्पना में जीना है और कल्पना में जीना स्वप्न में जीना है, मूर्छा में जीना हैं |
                      यह आवश्यक नहीं है कि आप जागते हुए भी होश में रहें | हम जागते हुए भी बेहोशी या निद्रा में हो सकते हैं और सोते हुए भी होश में रह सकते हैं | होशपूर्वक जीना उसी को कहते हैं जो केवल जागते हुए ही होश में न रहे बल्कि निद्रावस्था में भी होश में रहे | तथागत के बारे में कहा जाता है कि वे जब रात को सोते थे तो सम्पूर्ण रात्रि में एक ही करवट सोये रहते थे | इसका कारण था कि कहीं करवट बदलने पर उनसे कोई जीव हिंसा नहीं हो जाये | हो सकता है कोई छोटा सा जीव दूसरी ओर विचरण कर रहा हो और करवट बदलने पर वह जीव उनके नीचे दबकर कुचल जाये | इसे कहते हैं, होशपूर्वक जीना, निद्रावस्था में भी होश नहीं खोना | गीता में भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं –
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी |
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने: || गीता-2/69 ||
अर्थात सम्पूर्ण सांसारिक प्राणियों के लिए जो रात होती है, संयमी व्यक्ति उस समय भी जाग्रत रहता है | जब सांसारिक व्यक्ति जागते हैं उस समय मुनि के लिए वह समय रात्रि के समान है |
              इसका अर्थ यह नहीं है कि मुनि जब संसार के लिए दिन होता है, तब सो जाता है | इसका अर्थ यह है कि जब सांसारिक व्यक्ति दिन के समय अपने सांसारिक कार्य कलापों में व्यस्त हो जाते हैं तब भी मुनि होशपूर्वक रहता है और उन सांसारिक कार्यों में व्यस्त नहीं होता | इस प्रकार कहा जा सकता है कि एक स्थितप्रज्ञ दिन हो अथवा रात सदैव होशपूर्वक जीवन जीता है | गुरु आपको मानव जीवन के उद्देश्य से परिचित कराता है, जिससे आप आज और अभी को जी सको, होश में रहते हुए जी सको | अतः सर्वप्रथम उनकी इस बात को आत्मसात करें और होशपूर्वक जीने का प्रयास करें |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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