Monday, August 7, 2017

गुरु के सूत्र - 2

गुरु के सूत्र – 2
                      ‘गुरु की चोट, विद्या की पोट’, यह कहावत मुझे मेरी माँ सदैव ही कहा करती थी | हमारे समय में शाला में हम जब अपन गृह कार्य करके नहीं जाते थे अथवा कोई पाठ याद करके नहीं जाते थे या कभी कक्षा में शैतानी कर लिया करते थे, तब शिक्षक हमारी डंडे से खूब पिटाई किया करते थे | कभी कभी तो मुर्गा भी बना दिया करते थे या बेंच पर हाथ ऊपर कर खड़ा होने की सजा दे दिया करते थे | शाला के बाद जब हम घर पहुंचते तो जैसा कि स्वाभाविक होता है,इस सजा की शिकायत माँ से करते | तब माताजी यही कहावत कहते हुए बताती थी कि इस सज़ा से आपका ही भला होना है, शिक्षक को कोई लाभ नहीं मिलने वाला | उस समय हमें बड़ा बुरा लगता कि माँ भी शिक्षक का पक्ष ले रही है परन्तु आज अनुभव होता है कि उस समय माँ सही कहती थी |
                इसी प्रकार आध्यात्मिकता में, गुरु से गोविन्द तक की यात्रा में हमारा गुरु भी हमारे लिए सब कुछ करता है | उसका प्रत्येक वाक्य ब्रह्म वाक्य समझना चाहिए | वह जो भी आदेश दे, स्वीकार करना चाहिए | एक मात्र वही है, जो गोविन्द तक पहुंचा है और वही हमारा गोविन्द के पास पहुँचने में मार्गदर्शन कर सकता है | आइये ! हम विचार करते हैं कि वह एक शिष्य को गोविन्द तक पहुँचाने में किस प्रकार मार्गदर्शन करता है ? गुरु हमें जो मार्गदर्शन देता है, उनको सूत्र कहा जाता है | आइये ! हम सर्वप्रथम हम इसी शब्द “सूत्र”पर विचार करते हैं |
सूत्र -  
              गुरु हमें कुछ कहता है, हमारे साथ कुछ करता है, जिसके कारण हम अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल हो जाते है | गुरु का करना और कहना, दोनों ही उसके सूत्र हैं | हमें हमारे गुरु के इन्हीं सूत्रों का अनुसरण करना है | सूत्र किसे कहते हैं ? आइये ! पहले इस बात पर विचार कर लेते हैं | सूत्र शब्द के दो अर्थ हैं, पहला अर्थ है, धागा अथवा सूत (Thread) और दूसरा अर्थ है, संकेत, सिद्धांत अथवा सूत्र (Formula) |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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