Wednesday, August 23, 2017

गुरु के सूत्र - 18

गुरु के सूत्र - 18
चौथा सूत्र – रसमय जीवन (कल से आगे) -
                        इस प्रकार कठोपनिषद में वर्णित यम-नचिकेता संवाद में यम ने नचिकेता को स्पष्ट कर दिया है कि जीवात्मा से पूर्व इस व्यक्त संसार में केवल बुद्धि ही सर्वश्रेष्ठ है | इन्द्रियों को बलपूर्वक दबाने के स्थान पर अपनी बुद्धि से विचार करते हुए स्वीकार करें कि भोग-रस अंततः हमें दुःख के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दे सकते | शांति प्राप्त करने के लिए अपनी बुद्धि से मन में उठ रही विभिन्न कामनाओं को नियंत्रित करें | कामनाओं पर नियंत्रण मन को नियंत्रण में लेकर पाया जा सकता है | इस प्रकार कामनाओं पर नियंत्रण पाते ही आपकी इन्द्रियां स्वतः ही नियंत्रित हो जाएगी |  इस अवस्था को उपलब्ध होते ही आपके जीवन में शांत-रस का आगमन हो जायेगा | शांत-रस कामनाओं के शांत होने पर ही मिलना संभव हो सकता है |
                 अब चलते हैं, जीवन के एक और महत्वपूर्ण रस की ओर | यह महत्वपूर्ण तीसरा रस है-भाव-रस | शांत-रस प्राप्त कर लेने के उपरांत साधक को भाव-रस प्राप्त करने की ओर अग्रसर होना चाहिए | भाव-रस का अर्थ है, मनुष्य का भावना प्रधान होना, भक्ति-मार्ग पर अग्रसर होना | इस भाव-रस में मुख्यतः भावना प्रधान होती है | जैसा मैं हूँ वैसे ही सब प्राणी हैं | कोई किसी से अलग अथवा भिन्न नहीं है | जैसे भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं –
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति |
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||गीता-6/30||
अर्थात जो सम्पूर्ण भूतों में सबके आत्मरूप मुझको ही व्याप्त देखता है और सब भूतों को मुझके अंतर्गत देखता है, उसके लिए मैं और मेरे लिए वह कभी भी अदृश्य नहीं होता |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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