Monday, August 28, 2017

गुरु के सूत्र - 23

गुरु के सूत्र – 23
चौथा सूत्र – रसमय जीवन (कल से आगे)
                 भाव रस तक पहुँच कर पतन से बचने के लिए आप क्या कर सकते हैं ? आपको अपने मान-सम्मान और बढ़ती प्रसिद्धि की अवहेलना करनी होगी और दृष्टि को अपने एक मात्र लक्ष्य पर जमाये रखना होगा | साधना रत व्यक्ति के जीवन में एक नहीं अनेकों मेनकाएँ आएगी ही, यह सत्य है | आपको अडिग रहना है, लडखडाना नहीं है | पतन को प्राप्त हुए संतों ने यही गलती की कि उन्होंने प्रत्येक साधिका को मेनका समझ लिया | प्रत्येक साधिका मेनका नहीं हो सकती | अतः आपको सभी मेनकाओं से अपने आप को दूर रखना होगा | इस सम्बन्ध में एक छोटा सा दृष्टान्त प्रस्तुत है |
                एक घुमक्कड़ संत घूमते-घूमते एक छोटे से नगर में पहुँच गए | नगर वासी उनके मुख मंडल के तेज को देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके | सभी नगरवासियों ने स्वामीजी से आग्रह किया कि वे कुछ समय के लिए इसी नगर में रूक कर उनका मार्गदर्शन करें | उन्होंने संत के रहने के लिए एक छोटी सी कुटिया बना दी | नगर के एक मात्र मंदिर में उनके प्रवचन का कार्यक्रम रखा गया | कुटिया से संत जब मंदिर के लिए पैदल निकलते तो उन्हें एक वैश्या के घर के सामने से होकर जाना पड़ता | वैश्या भी संत के मुखमंडल को देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी | एक बार जब संत वैश्या के घर के सामने से मंदिर के रास्ते पर अग्रसर थे, तभी वैश्या ने छत पर से ऊँची आवाज में पूछा-“स्वामीजी, आप कच्चे संत है अथवा पक्के संत ?” संत ने छत पर खड़ी वैश्या पर एक दृष्टि डाली और उसकी भाव भंगिमाओं को देखते हुए प्रश्न को अनसुना कर दिया | दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ, संत उसके घर के सामने से निकल ही रहे थे कि वैश्या ने पुनः उनसे वही प्रश्न किया | अब तो  प्रतिदिन ही ऐसा होने लगा | स्वामीजी का वैश्या के घर के सामने से निकलना, वैश्या का उनसे वही प्रश्न पूछना और संत का बिना उत्तर दिए मंदिर की ओर चलते जाना |
                   दैव-योग, एक दिन संत चल बसे | नगरवासियों ने संत की सम्मान के साथ शव यात्रा निकाली | शव यात्रा के मार्ग में फिर उसी वैश्या का घर | वैश्या भी उत्सुकता वश छत पर खड़ी संत के अंतिम दर्शन के लिए प्रतीक्षा कर रही थी | संत की शव यात्रा देखकर उसके मुंह से अनायास ही निकल गया- “हाय ! संत तो मेरे प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही चले गए |” यह सुनते ही संत के शरीर में हलचल हुई और वे बोल पड़े – “ मैं पक्का संत हूँ | जब तक शरीर जीवित था तब तक मुझे स्वयं पर विश्वास नहीं था कि मैं पक्का संत हूँ क्योंकि तुम्हें देखकर और तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देकर मैं तुम्हारे जाल में कभी भी फंस सकता था | आज मेरा यह जड़ शरीर नहीं रहा, अब मैं पतन की और नहीं जा सकता इसलिए दावे के साथ कह सकता हूँ कि मैं एक पक्का संत हूँ |”
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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