यात्रा – गुरु
से गोविन्द तक -23 समापन कड़ी
सार-संक्षेप-
गुरु से गोविन्द तक की यात्रा, एक ऐसी
यात्रा है जो मानव जीवन के मूल उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है | यह यात्रा
संसार से एक दम विपरीत दिशा की यात्रा है | बिना किसी के मार्गदर्शन के यह यात्रा संपन्न
होनी लगभग असंभव है | मार्गदर्शक दो प्रकार के हो सकते हैं- शास्त्र अथवा गुरु | शास्त्र
आपको पुस्तकीय ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, आपको आंदोलित कर सकते हैं परन्तु गुरु अपने
अनुभव के आधार पर आपका मार्गदर्शन करता है | गुरु ने शास्त्रों को अपने ऊपर आजमाया
है, जिससे उसके अनुभव की सार्थकता है | उसने केवल प्रायोगिक ज्ञान पर पुस्तक नहीं
पढ़ी है बल्कि अपनी प्रयोगशाला में उन्हें प्रयोग कर सिद्ध किया है | वह जिस प्रकार
से आपके पुस्तकीय ज्ञान को प्रायोगिक ज्ञान में परिवर्तित करता है, वह आपकी इस यात्रा
को सुगम बनाता है | इसलिए गुरु की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता |
गुरु से इस यात्रा का मार्गदर्शन तभी
मिल सकता है, जब आप संसार से विमुख होना प्रारम्भ कर देते हैं | इसमे आपको गुरु सहायता
करता है | उसके द्वारा दिए गए निर्देश आपको यात्रा पथ पर आगे बढ़ने में सहायक सिद्ध
होते हैं | जब आप सत्य को जानने के लिए तैयार हो जाते हैं तब गुरु आपको ज्ञान देकर
आलोकित कर देता है | इस चैतन्य की अवस्था को उपलब्ध होकर आप आनंदित हो उठते हैं | आप
सत्य को जानकर चेतन हो जाते हैं, साथ ही साथ आप आनन्दित भी हो उठते हैं | इस चरण तक
पहुंचकर आप स्वयं ही सच्चिदानंद हो जाते हैं, जो कि परमात्मा का भी स्वरुप है | इस
प्रकार आप स्वयं ही गुरु की सहायता से गोविन्द हो जाते हैं | यही आत्म-बोध है और इस
गुरु से गोविन्द तक की यात्रा का समापन भी |
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः
गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरु: साक्षात् परं
ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||
तो, अब आप सब तैयार
हैं न, इस यात्रा के लिए – गुरु से गोविन्द तक की यात्रा के लिए | तो आइये चलें,
गुरु के साथ, गोविन्द तक पहुँचने के लिए इस यात्रा पर अग्रसर होने की तैयारी करने
के लिए अर्थात गुरु से कुछ सूत्र जानने के लिए, नई श्रृंखला-‘गुरु के सूत्र’ में |
आज स्वदेश के
लिए रवाना हो रहा हूँ, अतः नई श्रृंखला की प्रथम कड़ी के प्रकाशन में 4-5 दिन का
समय लग सकता है | आप सभी का आभार |
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम्
||
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