यात्रा – गुरु
से गोविन्द तक – 9
ऐसे गुरु, जो कि स्वयं सांसारिक
भोगों में लगे हुए हैं, वे आपसे आपका संसार व परिवार तो छुड़ा देते हैं परन्तु
स्वयं के संसार के साथ आपको बाँध लेते हैं | मैंने कई ऐसे कथित गुरुओं को देखा है,
जो शिष्यों से उनके परिवार से दूर कर व्यसनी तक बना डालते हैं | नशे का व्यसन आपको
तत्काल ही एक प्रकार की शांति प्रदान अवश्य कर देता है परन्तु यह शांति नशे के
व्यसन के कारण छद्म होती है | यह शांति मस्तिष्क में उत्पन्न हुई संवेदन शून्यता
की शांति है, वास्तविक शांति तो मस्तिष्क के पूर्ण जाग्रत हो जाने पर ही मिलती है
| मस्तिष्क पूर्ण जाग्रत होता है, ज्ञान से | अतः जो गुरु आपको अपने परिवार से अलग
कर अपने संसार के साथ बाँध लेता है, उससे बचें | यह तो वैसे ही हुआ जैसे एक
व्यक्ति इधर कुएं से निकलकर उधर जाकर खड्ड में गिर जाये | ऐसे गुरु पतन की राह पर
ही ले जा सकते हैं, परमात्मा के रास्ते पर नहीं | वास्तविक शांति तो संसार व
परिवार से जुड़े रहते हुए भी वास्तविक गुरु ज्ञान देकर उपलब्ध करा सकता है |
परमात्मा के लिए संसार छोड़ना आवश्यक नहीं है | अपने संसार को स्वयं के भीतर से निकाल
कर बाहर करना होता है | साथ ही ऐसा उपाय करना होता है कि ऐसा संसार आपके भीतर पुनः
प्रवेश न कर सके | ज्ञानीजन इस उपाय को बाड़ लगाना कहते हैं | इतना सब एक ज्ञानी
गुरु ही संभव कर सकता है |
संत कबीर
सच्चे गुरु की प्रशंसा में यहाँ तक कह गए हैं कि –
गुरु गोविन्द दोउ
खड़े, काके लागूं पांय |
बलिहारी गुरु आपकी,
गोविन्द दियो बताय ||
कबीर कहते हैं कि सच्चा गुरु वही
है, जिसने आत्म-ज्ञान करा दिया, जिसने परमात्मा को पाने का रास्ता दिखा दिया | ऐसे
गुरु पर बलिहारी हूँ जिसने गोविन्द को बता दिया अर्थात गोविन्द को कैसे पाया जा सकता
है, उसका रास्ता दिखा दिया | ऐसे गुरु को कबीर ने गोविन्द से भी उच्च स्थान दिया है
| ‘परमात्मा सर्वोच्च शक्ति है’, यह हम सभी जानते है, परन्तु हमारे में से कितने
व्यक्तियों ने इस वाक्य को जिव्हा से ह्रदय में उतारा है ? इसी वाक्य को आत्मसात
केवल गुरु ही करवा सकता है | इस वाक्य को आत्मसात करते ही आप स्वयं गोविन्द ही है |
जो आपको स्वयं का ज्ञान करा दे, ऐसे में आपसे बड़ा आपको ज्ञान कराने वाला ही हुआ न |
इसीलिए कबीर ने गोविन्द से गुरु को बड़ा कहा है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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