Thursday, July 13, 2017

यात्रा - गुरु से गोविन्द तक - 5

यात्रा – गुरु से गोविन्द तक – 5
                   विज्ञान में भी एक गुरुत्व का नियम है | जिसे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम कहा जाता है, जिसे न्यूटन ने सन् 1687 में दिया था | इस नियम के अनुसार संसार में प्रत्येक वस्तु दूसरी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है | इस आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहा जाता है | न्यूटन से पूर्व भारतीय गणितज्ञ वराह मिहिर (वरः मिहिर) ने छठी शताब्दी के प्रारम्भ में ही कह दिया था कि इस पृथ्वी में एक आकर्षण बल है, जो प्रत्येक वस्तु को अपने साथ चिपकाये रखता है, उस बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहा जाता है | वराह मिहिर का जन्म कपित्थ (उज्जैन) में हुआ था और फिर उन्होंने कुसुमपुर (पटना) जाकर शून्य की खोज करने वाले गणितज्ञ आर्य भट्ट  से भेंट की | उन्होंने वराह मिहिर को परामर्श दिया कि वे खगोल शास्त्र और ज्योतिष पर शोध करे | उसके बाद ही वराहमिहिर ने खगोल और ज्योतिष विज्ञान को ही अपने शोध का केंद्र बना लिया | आज भी उनके द्वारा लिखी गयी विभिन्न पुस्तकें नए विद्यार्थियों के लिए शोध हेतु उपयोगी हैं |
                  वराह मिहिर के बाद भास्कराचार्य द्वितीय ने बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में अर्थात न्यूटन से भी लगभग 550 वर्ष पूर्व ही इस गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की पुष्टि कर दी थी | वे लिखते हैं-
आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं
गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या |
आकर्ष्यते तत्पततीव भाति
समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे ||सिद्धान्तशिरोमणि गोलाध्याय – भुवन कोश ||
              अर्थात पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है | पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और इस आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं | परन्तु जब आकाश में समान शक्ति चारों और से लगे, तो कोई कैसे गिरे ? अर्थात आकाश में ग्रह निरावलम्ब यानि बिना किसी आधार के अपनी कक्षा में बने रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्ब शक्तियां आपस में संतुलन बनाये रखती है |
                          इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारतीय दर्शन शास्त्रियों को गुरुत्व बल के बारे में शताब्दियों पूर्व भी ज्ञान था | सांसारिक दृष्टि से व्यक्ति का शरीर भी एक पदार्थ अथवा वस्तु है | अतः कहा जा सकता है कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे व्यक्ति को आकर्षित करता है | हमें जो व्यक्ति सर्वाधिक आकर्षित करता है उसे गुरु कहा जा सकता है | इस प्रकार के आकर्षण में हमारे लक्ष्य की भूमिका महत्वपूर्ण होती है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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