यात्रा – गुरु
से गोविन्द तक – 3
हमें रहना भी तो इसी भौतिक संसार
में ही है न, जब तक हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच जाएँ | ऐसे में इस संसार में रहकर
भी हम संसार से अलग किस प्रकार हो सकते हैं ? जिस समय हमें संसार में रहते हुए भी संसार
से अलग होकर रहना आ जायेगा, उसी समय हम परमात्मा को पाने की यात्रा प्रारम्भ कर देंगे
और शीघ्र ही उसे प्राप्त कर यात्रा का समापन भी कर पाएंगे | इस बात का ज्ञान, जिसको
प्राप्त कर हम संसार में रहकर भी कामनाओं पर नियंत्रण स्थापित कर परमात्मा को प्राप्त
कर सकते हैं, जो व्यक्ति अथवा साधन ऐसा करा दे, उसे ही गुरु कहा जाता है | मेरी इस
बात को अन्यथा न लें कि सभी प्रकार की कामनायें रखना अनुचित है अथवा किसी भी प्रकार
की कामना रखना व्यर्थ है | हमारे मन में कामनाएं है तभी तक हमारा जीवन है अन्यथा इस
मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती | कामनाएं जब तक कामनाएं है तब तक उचित है परन्तु
जब कामनाएं वासनाओं में परिवर्तित होने लगती है और तृष्णा बन जाती है तब सब कुछ अनुचित
हो जाता है | किसी भी यात्रा का प्रारम्भ भी तो किसी न किसी कामना के कारण ही संभव
हो सकता है, अतः कामना को अनुचित कहना भी अनुचित है |
परमात्मा को पाने की इच्छा करना भी
तो एक प्रकार की कामना है | परमात्मा को पाने की यात्रा प्रारम्भ करना भी किसी कामना
के वशीभूत है परन्तु इस यात्रा की समाप्ति समस्त कामनाओं के त्याग करने से ही होती
है, यहाँ तक कि परमात्मा को प्राप्त करने की कामना का त्याग भी करना पड़ता है |
कामनाएं जीवन को जीने का आधार तैयार करती है अतः इनका पूर्ण रूप से परित्याग करना
एक मनुष्य के लिए संभव नहीं है | परन्तु कामनाओं के स्वरुप में परिवर्तन करना
हमारे लिए संभव अवश्य है | मेरे कहने का आशय यह है कि सांसारिक जीवन में विषय-भोग
की कामनाएं करने के स्थान पर आध्यात्मिक जीवन जीने की कामना करें | हमारी सबसे बड़ी
भूल यही है कि हम सांसारिक जीवन को तो रसपूर्ण मानते हैं और आध्यात्मिक जीवन को
नीरस | वास्तविकता यह है कि आध्यात्मिक जीवन सरस है | आध्यात्मिक जीवन का रस अखंड
है जबकि सांसारिक जीवन का रस एक बार ही नहीं बल्कि अनेकों बार खण्ड-खण्ड होता रहता
है | बार-बार खंडित होने वाले रस से अखंड रस अधिक आनंद प्रदान करता है | अखंड रस
आपको कैसे उपलब्ध हो सकता है, यह कोई ज्ञानी ही बता सकता है | उसी ज्ञानी व्यक्ति
को गुरु कहते हैं | तो आइये ! गुरु की खोज में आगे बढ़ते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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