अमेरिका आने के बाद एक सप्ताह तक तो jet lag से उबर नहीं पाया | यहाँ आकर दिन में नींद आना, जब उस समय
भारत में रात होती है और रात में जगे रहना, जब भारत में दिन रहता है | एक सप्ताह
लग गया, शरीर की जैविक घडी को इस स्थान के अनुरूप ढलने में | उसके बाद सपरिवार
पर्यटन के लिए निकल गया | सेन फ्रांसिस्को से डेनवर पूर्व में लगभग 1500 कि.मी.
दूर है और समयांतर एक घंटे का | डेनवर कोलोराडो राज्य की राजधानी है | कोलोराडो के
estes park नामक स्थान पर हम रुके थे | इस स्थान पर संत श्री मोरारी बापू की
रामकथा का आयोजन चल रहा था, जो कि अमेरिका के गुजराती समाज द्वारा किया गया था |
मुझे इसकी पूर्व में जानकारी थी और इस प्रकार यह यात्रा मेरे लिए पर्यटन के साथ
साथ सत्संग लेने का अवसर भी बन गई | Estes park का मौसम वैसा ही है, जैसा केदारनाथ
का रहता है, वही 3500 मीटर समुद्र तल से ऊंचाई और वही बर्फ से ढके पहाड़ | तीन
दिनों के लिए राम-कथा का श्रवण और वो भी पृथ्वी के एक दम दूसरे छोर पर, मुझे भीतर
तक आनंदित कर गया | वैसे बापू उच्च कोटि के वक्ता हैं और फिर वर्तमान समय में राम-कथा
करने में उनके तुल्य कोई अन्य मुझे नज़र नहीं आया है |
सेन फ्रांसिस्को लौट आने के बाद अपने आपको पुनः
लेखन के क्षेत्र में सक्रिय कर रहा हूँ | लगभग तीन सप्ताह हो गए हैं, आपसे मिले |
अभी भी तीन सप्ताह और बिताने हैं, इस विदेशी भूमि पर | मन तो मातृ-भूमि को याद
सदैव ही करता है परन्तु परिवार की मानसिकता को देखते हुए यहाँ आकर उनका भी मन रखना
था | समय धीरे धीरे बीत रहा है और शेष समय भी इसी प्रकार बीत जायेगा |
आज 8/7 को यहाँ पर गुरु पूर्णिमा है और भारत में कल 9/7 को है | इस
अवसर पर एक नई श्रृंखला शुरू करने जा रहा हूँ –“यात्रा-गुरु से गोविन्द तक” | शब्द
मेरे हो सकते हैं परन्तु भावनाएं और ज्ञान पिछले कई वर्षों से ज्ञानी पुरुषों से मिले
सत्संग का परिणाम है | प्रत्येक ज्ञानी व्यक्ति गुरु होता है और जहाँ से ज्ञान मिल
सकता है, उन्हें गुरु कहने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होना चाहिए | ज्ञान
विभिन्न महात्माओं और प्रवचन कर्ताओं से मिला है परन्तु उस ज्ञान को आत्मसात करने
में मार्गदर्शन हरिः शरणम् आश्रम, हरिद्वार के आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा से
मिला है, उनके समकक्ष मेरे लिए कोई अन्य नहीं हो सकता | वे मेरे बड़े भाई, मेरे
आदर्श और मेरे आध्यात्मिक जीवन के मुख्य आधार हैं | गुरु-पूर्णिमा के अवसर पर मैं
उन्हे साष्टांग प्रणाम करता हूँ | जीवन में आप कितना भी शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त
कर लें, गुरु की आवश्यकता सदैव बनी रहेगी क्योंकि पुस्तकीय ज्ञान और अनुभव किये गए
ज्ञान में बहुत अंतर होता है | गुरु इस पुस्तकीय ज्ञान को आपके भीतर तक उतार देता
है | नई श्रृंखला में गुरु के इसी महत्त्व
पर चर्चा करेंगे | आशा है, आपको यह श्रृंखला पसंद आएगी और आपके लिए उपयोगी भी
रहेगी |
आपका- डॉ. प्रकाश काछवाल
कल से – यात्रा- गुरु से गोविन्द तक
|| हरिः शरणम् ||
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