Wednesday, July 26, 2017

यात्रा - गुरु से गोविन्द तक -18

यात्रा – गुरु से गोविन्द तक – 18
              आनंद के इस चरण पर आकर साधक की सभी कामनाएं तिरोहित हो जाती है, यहाँ तक कि गोविन्द को पाने की कामना भी | जब आप अपने लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं, तब आप लक्ष्य से अलग बने नहीं रह सकते बल्कि आप उसी लक्ष्य के आत्मसात हो जाते हैं | साधक का साध्य के साथ मिलन होते ही साधक मिट जाता है | आत्मा का परमात्मा के साथ मिलन हो जाने पर एक केवल परमात्मा ही शेष रह जाता है | इस प्रकार आनंद की अवस्था को उपलब्ध हो जाने पर स्वयं का अर्थात ‘मैं’ का अंत हो जाता है | राग-द्वेष, सुख-दुःख, मान-अपमान, जन्म-मृत्यु, मोह, मद, भय आदि तो ‘मैं’ में ही तो रहते हैं और उस ‘मैं’ के कारण ही होते हैं | गुरु ने आपके ‘मैं’ को समाप्त कर दिया | ‘मैं’ की समाप्ति ही गोविन्द की प्राप्ति है और इस आध्यात्मिक यात्रा का अंत भी | आनंद की अवस्था में न कोई बंधन है और न ही किसी भी प्रकार की मुक्ति | बंधन रहता है, तभी तक मुक्ति की चाह रहती है, एक बार बंधन टूटा कि मुक्ति की चाह भी समाप्त हो गई | आनंद की अवस्था में न तो जन्म है और न ही मृत्यु | जब जन्म भी नहीं है और मृत्यु भी नहीं है तो इसका अर्थ है कि फिर पुनर्जन्म भी संभव नहीं है | इस आवागमन मिट जाने वाली अवस्था को हम आध्यात्मिक यात्रा का अंत कह सकते हैं |
             आनंद की प्राप्ति आपको सभी प्रकार के भय से भी मुक्त कर देती है | मृत्यु का भय सबसे बड़ा भय है | शारीरिक मोह के कारण मृत्यु का भय पैदा होता है, सांसारिक मोह के कारण दुःख पैदा होने का भय होता है, पारिवारिक मोह के कारण कुछ न कुछ खो जाने का भय रहता है | इस भय से मुक्त होना तभी संभव है, जब आप वास्तविक ज्ञान अर्थात आत्म-ज्ञान को उपलब्ध हो गए हों | आत्म-ज्ञान को उपलब्ध हो जाना ही परमात्मा हो जाना है, गोविन्द को पा लेना है | आत्म-ज्ञान आपको सभी प्रकार के भय से मुक्त कर देता है | अतः गुरु कहते हैं कि आलोकित होकर भी संतुष्ट नहीं होना है | आलोक को जीवन में उतारकर आनंद की अवस्था को उपलब्ध होना है | आनंदित होना अर्थात परमात्मा हो जाना, गोविन्द तक की यात्रा पूरी कर लेना | सांसारिक यात्रा का समापन नहीं हो सकता परन्तु इस गोविन्द तक की यात्रा का समापन अवश्य संभव है | इस प्रकार की यात्रा के समापन का नाम ही कैवल्य है, निर्वाण है,मोक्ष है, शून्य हो जाना है, अनंत को पा लेना है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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