Saturday, July 29, 2017

यात्रा - गुरु से गोविन्द तक - 21

यात्रा – गुरु से गोविन्द तक – 21
                   इस यात्रा का द्वितीय चरण है- आलोकित होना | परमात्मा सत्य होने के साथ साथ चैतन्य भी है | चैतन्य का दूसरा नाम आलोक भी है | गुरु हमें गोविन्द तक की इस यात्रा में हमें ज्ञान देकर आलोकित करता है | ज्ञान वह जो परमात्मा के चैतन्य स्वरुप से हमें परिचित करा दे | जब हमें गुरु चैतन्य कर देता है तब हम उस चैतन्य स्वरुप के ही एक अंश अर्थात स्वयं से परिचित हो जाते हैं | ऐसा नहीं है कि हम इससे पहले उस चैतन्य के अंश नहीं थे, हम सदैव ही उस चैतन्य के अंश है परन्तु सांसारिक विषय भोगों में लिप्तता के कारण हम अपने उस स्वरुप को विस्मृत कर चुके हैं | गुरु हमारी उसी विस्मृति को पुनः स्मृति में परिवर्तित कर देता है |
                 गुरु से गोविन्द तक की इस यात्रा का तृतीय चरण है- आनंदित होना | गुरु हमें हमारी स्मृति लौटा देता है | स्मृति को पाकर हम सभी द्वंद्वों से परे होकर निर्द्वंद्व हो जाते हैं, भय-मुक्त हो जाते हैं, सभी गुणों से परे होकर गुणातीत हो जाते हैं | इसी निर्द्वंद्व, गुणातीत और भय-मुक्त अवस्था का नाम है आनन्दित होना | आनंद स्वरुप भी परमात्मा का स्वरुप है | इस प्रकार चैतन्य करने के बाद गुरु हमें आनन्द प्राप्त करने के लिए स्वयं से भी मुक्त कर देता है | इसीलिए एक सच्चा गुरु कभी भी हमें स्वयं के साथ चिपके रहने को विवश नहीं करता है बल्कि वह स्वयं से भी हमें मुक्त कर देता है | आनंद मुक्ति में ही है, बंधन में नहीं | जो गुरु स्वयं के साथ आपको बांध लेता है, वह आपको आनन्दित नहीं होने देता | इसीलिए गुरु कहता है कि प्रथम चरण को पाकर ही संतुष्ट न होना और न ही आलोकित होकर संतुष्ट हो जाना | दोनों से भी एक तीसरी अवस्था और है, जिसे पाना अत्यावश्यक है और वह अवस्था है, आनंद की, जो शिष्य को अकेले ही आगे बढकर प्राप्त करनी होती है | जिसको सभी बंधन तोड़कर, सभी कामनाओं को त्यागकर ही प्राप्त किया जा सकता है |
                   इस प्रकार हम देखते हैं कि शिष्य ने गुरु से प्रथम चरण में सत्य को पाने का प्रयास किया, दूसरे चरण में अपने सत्य और चैतन्य स्वरुप होने का ज्ञान प्राप्त किया और अंतिम चरण में सभी प्रकार के बंधन और कामनाओं को त्यागकर आनन्द को प्राप्त हुआ | इस प्रकार वह सत्य, चैतन्यता और आनन्द तीनों को पाकर स्वयं ही सच्चिदानंद हो गया है, जो कि साक्षात् परमात्मा का स्वरुप है | सच्चिदानंद स्वयं गोविन्द ही है | इस प्रकार एक व्यक्ति का स्वयं ही गोविद हो जाना है, एक आत्मा का अपने वास्तविक स्वरुप को जानकर परमात्मा हो जाना है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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