यात्रा – गुरु
से गोविन्द तक – 6
इस भौतिक संसार
में भी अनंत आकर्षण है और प्रत्येक आकर्षित करने वाली वस्तु अथवा व्यक्ति को गुरु नहीं
कहा जा सकता | वैसे प्रत्येक क्षेत्र में गुरु अथवा उस्ताद होते हैं चाहे वह क्षेत्र
दादागिरी से भी सम्बंधित क्यों न हो | वास्तव में हम ऐसे व्यर्थ और अज्ञान के मामलों
में गुरु शब्द का दुरूपयोग ही कह रहे हैं | वास्तव में परमात्मा को ज्ञान करा देने
वाला व्यक्ति ही गुरु हो सकता है | शेष क्षेत्रों में पारंगत कर देने वाला मात्र एक
शिक्षक ही हो सकता है | ऐसी शिक्षा जिसका परमात्मा से दूर-दूर तक कोई रिश्ता न हो,
वह शिक्षा ज्ञान कदापि नहीं हो सकती |
गुरु हमें अपनी तरफ आकर्षित
करता है अथवा हम गुरु की तरफ आकर्षित होते है, इस प्रश्न का उत्तर भी जानना आवश्यक
है | गुरुत्वाकर्षण का नियम कहता है कि प्रत्येक वस्तु एक दूसरे को आकर्षित करती है
ठीक उसी प्रकार शिष्य को गुरु आकर्षित करता है और गुरु को शिष्य | जिस प्रकार एक व्यक्ति
को ज्ञान प्राप्ति के लिए किसी गुरु का शिष्य बनने की चाह होती है उसी प्रकार एक गुरु
को भी अच्छे शिष्य की तलाश रहती है | गुरु आपको अपना शिष्य बनाने के लिए आपकी परीक्षा
लेता है और उस परीक्षा को उत्तीर्ण करने पर ही आपको वह गुरु उपलब्ध हो सकता है |
एक बार गुरु का चयन कर लिया, फिर उनमें श्रद्धा रखना आवश्यक
है | बिना श्रद्धा के ज्ञान उपलब्ध नहीं हो सकता | महापुरुष तो यहाँ तक कह कर गए
हैं कि अगर गुरु मानसिक असंतुलन वाली बातें भी करें, एक पागल की तरह भी व्यवहार
करे, तो भी उन के प्रति श्रद्धा कम नहीं होनी चाहिए | प्रायः हम जब गुरु से
संतुष्ट नहीं होते, तब दूसरे गुरु की खोज में निकल पड़ते हैं | ऐसे में कमी आप में
हैं, गुरु में नहीं | अगर आप एक ज्ञानी व्यक्ति से संतुष्ट नहीं है, तो फिर संसार
में कहीं पर भी चले जाइये, किसी दूसरे ज्ञानी से भी संतुष्ट नहीं हो सकेंगे | अतः
गुरु में सदैव निष्ठा रखें |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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