Monday, July 24, 2017

यात्रा – गुरु से गोविन्द तक – 16

यात्रा – गुरु से गोविन्द तक – 16
                  आलोकित होना आनंदित होने के लिए आवश्यक है | बिना आत्म-ज्ञान हुए हम स्वयं को पहचान नहीं सकते | जब तक हम स्वयं को नहीं जान पाएंगे तब तक परमात्मा को कैसे जान पाएंगे | गुरु इस गोविन्द तक की यात्रा में यही ज्ञान प्रदान करता है कि आप और परमात्मा में कोई भेद नहीं है | आत्मा और परमात्मा में किसी भी प्रकार का भेद न होना, यह सब व्यक्ति जानते हैं परन्तु इसका अनुभव कितनों को हुआ है, यह अधिक महत्वपूर्ण है | संसार में विभिन्न पुस्तकों में अथाह ज्ञान भरा पड़ा है और ऐसा भी नहीं है कि उन पुस्तकों को कोई पढ़ता नहीं है |  पढ़कर भी अगर हम ज्ञान को उपलब्ध नहीं हुए तो ऐसा पढ़ना भी व्यर्थ है | इसीलिए पुस्तकें पढ़ लेने के बाद भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है | विभिन्न शास्त्र हमें आंदोलित कर सकते है, आलोकित नहीं | हमें आलोकित केवल वही व्यक्ति कर सकता है, जो स्वयं भी आलोकित हो चूका हो | ऐसे आलोकित व्यक्ति के पास जाने से ही हमें आत्म-ज्ञान हो सकता है |
                    गुरु हमें आलोकित होने के लिए मार्गदर्शन करता है | हमें मार्ग भी वही दिखा सकता है, जो उस मार्ग को जान चूका हो, हमें प्रकाश वही व्यक्ति दिखला सकता है, जिसके स्वयं के पास प्रकाश हो | अतः गुरु के प्रकाश में गोविन्द को जाने का मार्ग तलाश करें, गुरु को माध्यम बना लें, गोविद को पाने का | इस मनुष्य जीवन में अनेकों व्यक्ति मिल जायेंगे आपको परमात्मा का मार्ग बताने के लिए | परन्तु आत्म-ज्ञान करा देने वाला कोई विरला ही मिलेगा जो स्वयं आत्मज्ञानी हो | पुस्तकें पढ़कर सांसारिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है | एक शिक्षक भी आपको सांसारिक ज्ञान प्रदान कर सकता है परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान केवल गुरु ही करा सकता है | कबीर इस बारे में कहते हैं –
पूरे सूं परचा भया सब दुःख मेल्या दूर |
निर्मल कीन्हीं आत्मा ताथै सदा हुजुर ||
अर्थात सद्गुरु की कृपा से मेरा सम्पूर्ण ब्रह्म से साक्षात्कार हो गया, उस सम्पूर्ण तत्व से मेरा परिचय हो गया | अब सारे दुःख और संसार की पीड़ा का बोध समाप्त हो गया | आत्मा समस्त आवरणों और विक्षेपों से मुक्त होकर शुद्ध हो गयी है | अब तो मैं सदैव मेरे मालिक (परमात्मा) की सेवा में ही लगा रहता हूँ |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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