Saturday, July 22, 2017

यात्रा - गुरु से गोविन्द तक - 14

  यात्रा – गुरु से गोविन्द तक – 14
                 पूर्व मानव-जन्म में परमात्मा को पाने के लिए किये गए प्रयास अगर उस जीवन में सफल नहीं हो पायें हों, तो इस जीवन में बाल्यकाल से ही मनुष्य संसार से विमुख हो जाता है और सत्य की खोज में लग जाता है | ऐसे बालक को गोविन्द को पाने में अथक प्रयास नहीं करना पड़ता परन्तु गुरु को पाकर इस लक्ष्य तक वह और अधिक सुगमता से पहुँच सकता है | इस प्रकार हमने देखा कि मनुष्य संसार से विमुख या तो पूर्व-जन्म के संस्कार से, तत्काल किसी घटना के कारण अथवा फिर निर्बल होते शरीर को देखकर समय रहते सावधान हो जाने से हो सकता है |     
              इस प्रकार संसार से विमुख होने के लिए एक आधार तैयार हो जाता है, जो हमें सत्य की ओर ले जा सकता है | इसके लिए मन में जो सत्य को जानने की तीव्र उत्कंठा पैदा होती है, उसे ही आंदोलित होना कहा जाता है |  ऐसा आन्दोलन, जो आपको संसार से विमुख कर परमात्मा के सम्मुख कर देता है | इस आन्दोलन का परिणाम क्या होगा ? यह सब गुरु जानता है | वही निश्चित करता है, इस आन्दोलन का परिणाम | संसार से विमुख और परमात्मा के सम्मुख कर देना ही गुरु के प्रयास का प्रथम चरण है | आधुनिक युग में ऐसे गुरु भी हैं जो सांसारिक बंधन से तो मुक्त करा नहीं सकते बल्कि अपने साथ और बांध लेते हैं | ऐसे गुरुओं से सावधान रहने की आवश्यकता है | गुरु-गीता में ऐसे ही गुरु को त्याग देने की बात कही गई है |
                   आंदोलित मन आनंद की खोज का प्रयास करता है | हमारा स्वयं का संसार और हमारी कामनाएं ही सुख दुःख का मूल कारण है | इस सुख-दुःख के द्वंद्व से बाहर निकलने का प्रयास ही आन्दोलन है | केवल सुख-दुःख के द्वंद्व से ही नहीं, राग-द्वेष, जीवन-मृत्यु, पाप-पुण्य, सत्य-असत्य आदि सभी प्रकार के द्वंद्वों से परे जाने का ही यह आन्दोलन है | जब तक मनुष्य इन द्वंद्वों से बाहर निकलेगा नहीं, तब तक वह शांति को उपलब्ध नहीं हो सकता | इस बात का ज्ञान हो जाना कि ये सब द्वंद्व ही हमारी अशांति के मूलभूत कारण है और इन सबसे छुटकारा पाना आवश्यक है, ही आंदोलित होना है | यह स्थिति एक साधक की प्रारम्भिक स्थिति है | साधक, वह व्यक्ति जो साध्य अर्थात आनंद को पाने के लिए अब आंदोलित हो गया है | कई व्यक्ति साधक की इस प्रारम्भिक आवस्था में आकर ही संतुष्ट हो जाते हैं | हाँ, यह सत्य है कि आंदोलित मन सांसारिक मन से एक विपरीत अवस्था है परन्तु अभी भी व्यक्ति अपने लक्ष्य को पाने से कोसों दूर है | गुरु कहता है कि तुम इस आन्दोलन की स्थिति को प्राप्त होकर ही संतुष्ट न हो जाना | अभी भी बहुत लम्बा रास्ता तय करना शेष है |
  क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् || 

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