Wednesday, July 12, 2017

यात्रा - गुरु से गोविन्द तक - 4

यात्रा – गुरु से गोविन्द तक – 4
गुरु -
                इतने विवेचन करने के बाद हमें गुरु की परिभाषा स्पष्ट हो जाती है और हम कह सकते हैं कि सांसारिक कामनाओं का त्याग कर परमात्मा की ओर ले जाने वाले किसी भी साधन अथवा व्यक्ति को गुरु कहा जा सकता है | गुरु शब्द बड़ा ही महत्वपूर्ण शब्द है | गुरु शब्द में ‘गु’ का अर्थ है अन्धकार और ‘रु’ का अर्थ है, प्रकाश | जो ज्ञानी व्यक्ति हमें अज्ञान रुपी अन्धकार से बाहर निकाल कर ज्ञान से प्रकाशित कर देता है, उसे ‘गुरु’ कहा जा सकता है | संसार का ज्ञान मात्र अज्ञान है, परमात्मा का ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है | संसार अनित्य है, परिवर्तनशील है | वह कल कुछ था, आज कुछ और है तथा कल कुछ और ही हो जायेगा | जो इतना परिवर्तन शील है वह भला सत्य कैसे हो सकता है, वह तो असत्य ही होगा | असत्य को सत्य मान लेना ही अज्ञान है , अंधकार में पड़े रहना है | सत्य तो परमात्मा है, जो नित्य है, अपरिवर्तनशील है | अतः परमात्मा ही सत्य है, यही वास्तविक ज्ञान है | गुरु हमें इसी बात का ज्ञान करा देता है अर्थात गुरु ही हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाता है |
                       गुरु शब्द का दूसरा अर्थ है, आकर्षित करने की क्षमता रखने वाला अर्थात जिसमे किसी भी वस्तु अथवा व्यक्ति को आकर्षित करने की क्षमता हो वह गुरु कहलाता है और इस क्षमता को गुरुत्व कहा जाता है | संसार भी तो हमें अपनी ओर आकर्षित करता है, संसार के विषय-भोग भी तो हमें अपनी ओर आकर्षित करते है ऐसे में क्या संसार हमारा गुरु हो सकता है ? अतः सर्वप्रथम हमें यह समझना आवश्यक है कि गुरु में आकर्षण किस बात का होना चाहिए ? इस प्रश्न का उत्तर मिल जाने पर ही हम गुरु होने की क्षमता का आकलन कर सकते हैं | किसी भी क्षेत्र में, जिसमे हमें ज्ञान प्राप्त करने की उत्कंठा होती है अथवा पारंगत होने की कामना होती है, तब उसी क्षेत्र में विशिष्टता लिए व्यक्ति की खोज प्रारम्भ करते हैं | जो ज्ञानी व्यक्ति उस क्षेत्र में विशेषज्ञ होता है, हम उसकी तरफ आकर्षित होते हैं अथवा यह कहा जा सकता है कि वह विशेषज्ञ हमें अपनी ओर आकर्षित करता है | दोनों ही एक समान बातें है | इस प्रकार उस ज्ञानी व्यक्ति को हम गुरु कह सकते हैं | ऐसा ज्ञानी व्यक्ति ही हमें अपने लक्ष्य तक पहुँचने में मार्गदर्शन कर सकता है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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