Monday, July 10, 2017

यात्रा - गुरु से गोविन्द तक - 2

यात्रा- गुरु से गोविन्द तक – 2  
                       अनंत यात्रा हमें थका देती है जिस कारण से हमारा सम्पूर्ण जीवन नीरस हो जाता है | केवल एक जीवन ही नहीं, अनेकों जीवन भी हमारी इस थकान को मिटा नहीं सकते | यात्रा की थकान आगे की यात्रा को एक यांत्रिक यात्रा बना देती है | यांत्रिक यात्रा में हम चलते तो रहते हैं, परन्तु उस चलने का उद्देश्य हमें सपष्ट नहीं होता | इस अनंत यात्रा में हमारे लिए यह विचारणीय विषय हो जाना चाहिए कि आखिर इस अनंत यात्रा का उद्देश्य क्या है ? हमें हमारे जीवन का उद्देश्य तभी पता चलेगा जब हम या तो इस यात्रा से पूर्ण रूप से थक चुके होंगे अथवा फिर कोई अन्य व्यक्ति या साधन हमें हमारे उद्देश्य का स्मरण करा देगा | थकान भरी यात्रा के बाद उद्देश्य का ज्ञान हो जाना परमात्मा की कृपा के बिना होना संभव नहीं है | सब कुछ हमारे प्रारब्ध पर निर्भर है कि हमें हमारा उद्देश्य कब स्पष्ट होता है ? इस लक्ष्य को स्पष्ट करने के लिए परमात्मा हमें ऐसे अवसर प्रदान करता है, जिस को समझ कर हम उस अवसर का लाभ ले सकते हैं | ऐसे अवसर को जीवन का Turning point कहा जाता है | मनुष्य के जीवन में ऐसी कई घटनाएँ घटित होती है अथवा किसी अप्रत्याशित घटना से सामना होता है, जिनको देख कर उसे अपना विस्मृत लक्ष्य स्मरण में आ सकता है | ऐसे प्रत्येक अवसर का लाभ उठाने वाले व्यक्ति की यात्रा सरल हो जाती है और शीघ्र ही समाप्त भी हो सकती है |     
                       जीवन में घटित होने वाली ऐसी ही किसी घटना को समझ कर हमें अपना लक्ष्य निर्धारित कर लेना होगा, तभी हम साधारण मनुष्य से साधक की श्रेणी में आ सकते हैं | साधक कौन है ? साधक वह है, जो साध्य (लक्ष्य) के लिए साधना (प्रयास) करे | हमारा साध्य  हमारी अनंत कामनाएं और उन कामनाओं से भरा यह संसार नहीं हो सकता | जिस साधना (यात्रा) का अंत नहीं हो वह कभी साधना हो ही नहीं सकती | साधना तो वही होती है, जो साध्य तक पहुँच कर पूर्णता को प्राप्त हो जाये | कामनाओं की यात्रा का अंत नहीं है और ये कभी पूर्ण नहीं होती, अतः यह संसार हमारा साध्य हो ही नहीं सकता | ऐसे में हमारा साध्य केवल एक ही रह जाता है और वह साध्य अथवा लक्ष्य है, परमात्मा | अगर हम इस अनंत यात्रा का अंत चाहते हैं तो हमारा लक्ष्य भी उस अनंत को पाना होना चाहिए जिसको पूर्णता के साथ पाया जा सकता हो और जिसको पाकर हमारी अनंत यात्रा का अंत भी हो जाये | ऐसा लक्ष्य केवल एक ही है, परमात्मा | अतः अगर परमात्मा को पाना है, तो हमारा लक्ष्य भी परमात्मा ही होना चाहिए, हमारी अनंत कामनाएं और यह भौतिक संसार नहीं |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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