Wednesday, July 19, 2017

यात्रा – गुरु से गोविन्द तक – 11

यात्रा – गुरु से गोविन्द तक – 11
                     गुरु के मिल जाने के उपरांत ही गोविन्द को पाने की यात्रा का प्रारम्भ होता है | यह यात्रा तीन चरणों में पूर्णता को प्राप्त होती है | यात्रा के प्रथम चरण में आपकी सत्य के प्रति प्यास बढती है, ज्ञान प्राप्त करने की तीव्र उत्कंठा जाग्रत होती है | ऐसा होते ही गुरु आपको यात्रा को गति प्रदान करता है, जो आपको अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाती है | तो आइये ! इस यात्रा के प्रथम चरण में गुरु के साथ प्रवेश करते हैं |
  प्रथम चरण – मन का आंदोलित होना -
               गुरु के साथ सत्संग करने से आपका हृदय आंदोलित हो उठता है | जो गुरु आपको भीतर तक आंदोलित कर दे, वही सच्चा गुरु हो सकता है | आप गुरु के पास अपनी प्यास लेकर आये हैं | गुरु आपकी प्यास को महसूस कर आपको भीतर तक आंदोलित कर देता है | यह आन्दोलन आपको आत्म-ज्ञान की अवस्था तक पहुँचाने के लिए मुमुक्षु बना देता है | आन्दोलन एक शब्द, जिसका अर्थ है आनंद के लिए दोलन | जिस प्रकार एक दोलक बाएं से दायें और दायें से बांये दोलन करता रहता है, उसी प्रकार जब आपका हृदय, आपका मन आनंद के लिए दोलन करने लगे तो उसे आंदोलित होना कहते हैं | आनंद ही परमात्मा है | प्रथम चरण में आपको आनन्द प्राप्त करने के लिए आंदोलित होना होता है |
                 आपको अपने जीवन में जब सांसारिक बातें आकर्षित करना कम कर दे, तब आप समझ लें कि आपके जीवन में परिवर्तन का समय आ रहा है | जीवन में परिवर्तन अर्थात सांसारिक जीवन से आध्यात्मिक जीवन का प्रारम्भ | संसार से दो प्रकार से विमुख हुआ जा सकता है- तत्काल अथवा धीरे-धीरे | अचानक संसार से विमुख होकर परमात्मा के सम्मुख होने का सबसे बड़ा कारण होता है, जीवन में अघटित का घटित होना | वैसे अघटित कभी घटित नहीं हो सकता परन्तु संसार की दृष्टि में ऐसी किसी भी घटना को अघटित कहा जाता है, जिस घटना के घटित होने की कल्पना तक नहीं की जाती | प्रियजन से असामयिक विछोह की घटना को इस श्रेणी में रखा जा सकता है | ऐसी किसी भी घटना को संजीदगी के साथ लें और यही सोचें कि परमात्मा ने मेरे हित के लिए ही ऐसा किया होगा |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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