यात्रा – गुरु
से गोविन्द तक – 10
गुरु केवल मार्ग बताता है, चलना शिष्य
को ही पड़ता है | गुरु इशारों और संकेतों में बात करता है | जब तक शिष्य अपने अन्दर
जिज्ञाषा नहीं रखता तब तक गुरु का संकेत समझना असंभव है | गुरु भी अपने शिष्य का चयन
उसकी प्यास को देखकर ही करता है | जब तक शिष्य की प्यास एक सीमा से अधिक नहीं बढ़
जाती, तब तक गुरु उसे मार्ग नहीं दिखा सकता | अतः किसी योग्य गुरु के पास जाओ, तो प्यास
लेकर जाओ अन्यथा आप वैसे ही वापिस लौट आओगे | प्यास ज्ञान की, प्यास आत्म-बोध की |
आप अगर पहले से किसी प्रकार के कथित ज्ञान से भरे हुए हों, जो कि वास्तव में देखा
जाये तो केवल अपूर्ण और त्रुटिपूर्ण (Imperfect) ज्ञान होता है, तो ऐसे में सच्चा गुरु भी आपकी कोई सहायता नहीं कर
सकता | एक आदर्श गुरु को पहले आपके इस त्रुटिपूर्ण ज्ञान को मिटाना पड़ता है | जो रीता
हो, उसे ही भरा जा सकता है, भरे हुए को क्या भरना | पहले अपना मस्तिष्क समस्त प्रकार
के ऐसे अपूर्ण और त्रुटिपूर्ण ज्ञान से रिक्त करके आयें और फिर जिस व्यक्ति के पास
जाने से आपके हृदय में परमात्मा को पाने के लिए हलचल मच जाये, जिस व्यक्ति को सुनकर
आपको लगे की मुझे ऐसे ही ज्ञानी की खोज है, समझ लीजिये आपके लिए वही सच्चा गुरु है
|
सच्चे गुरु की खोज तभी प्रारम्भ होती
है, जब आप सांसारिक गतिविधियों से उबकर आध्यात्मिकता की राह पर चलने को उद्यत हुए हो
| सांसारिक कार्यकलाप आपको आध्यात्मिकता की राह पर चलने की जिज्ञाषा तक पैदा नहीं होने
देते | गोविन्द को पाने की यात्रा प्रारम्भ करनी है तो सबसे पहले संसार की मोह माया
के जाल से निकल कर किसी गुरु की शरण में जाना होगा | एक बार गुरु मिल गए तो समझ लें
गोविन्द भी मिल गए | गुरु से गोविन्द तक की यात्रा तीन चरणों में सम्पूर्ण होती है
| हम इन तीनों चरणों की एक एक कर चर्चा करेंगे | याद रखें, हमें किसी भी एक चरण पर
पहुँच कर ही संतुष्ट नहीं होना है बल्कि अंतिम चरण तक पहुँचना है | अंतिम चरण को सफलता
पूर्वक पूर्ण कर लेना ही परमात्मा को पा लेना है | गुरु आपको राह दिखा रहे हैं और उस
गुरु के सानिध्य से आप प्रथम चरण में प्रवेश करते हैं | यह प्रथम चरण में प्रवेश ही
आपकी भावी दिशा निश्चित करता है | गुरु के सानिध्य और उनसे हुए सत्संग से प्रथम चरण
का प्रारम्भ होता है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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