यात्रा – गुरु
से गोविन्द तक – 19
सांसारिक यात्रा का समापन क्यों नहीं
हो पाता है ? इस प्रश्न का उत्तर केवल एक ही है – संसार के प्रति हमारी आसक्ति | हमारी
देह, हमारी धन-सम्पति, हमारा परिवार, पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री आदि में हमारी
आसक्ति ही कामनाओं के अनवरत चलते रहने वाले चक्र की जननी है | हमारे भीतर सदैव उठती
रहने वाली विभिन्न प्रकार की कामनाएं हमें संसार के साथ बांधे रखती है | मनुष्य के
जीवन में सांसारिक कामनाओं का कभी भी अंत नहीं हो सकता, इसीलिए संसार की यात्रा का
समापन भी नहीं है | जब कामनाएं एक जीवन काल में पूरी नहीं होती, तो उन्हीं कामनाओं
को पूरा करने के लिए दूसरा जन्म लेना पड़ता है | नया जन्म पाकर भी कौन सी सभी कामनाएं
पूरी हो जाती है ? समस्त कामनाएं पूरी इसलिए नहीं हो सकती क्योंकि एक कामना पूरी होते
ही फिर एक नई कामना का जन्म हो जाता है | फिर एक जन्म, एक और जन्म, इस प्रकार यह अंतहीन
शारीरिक जन्म-मरण अर्थात शरीर परिवर्तन का चक्र सतत चलता रहता है |
आध्यात्मिक यात्रा का समापन निश्चित
है क्योंकि इसमे कामना केवल गोविन्द को पाने की है और वह कामना भी गुरु की कृपा से
शीघ्र ही पूरी हो जाती है | आंदोलित होने से लेकर आनन्दित होने तक की यात्रा में सभी
कामनाएं एक एक कर समाप्त होती जाती है और अंत में गोविन्द को प्राप्त करने की
कामना भी गिर जाती है | सभी कामनाओं का समापन हो जाना ही आध्यात्मिक यात्रा का समापन
है | इस आध्यात्मिक यात्रा को ही गुरु से गोविन्द तक की यात्रा कहा जाता है | गुरु
को जान लिया, गुरु के प्रभाव को जान लिया, उसके ज्ञान को जान लिया, फिर भी यह जानना
अभी भी शेष है कि आखिर हमें गोविद ही क्यों चाहिए ? गोविन्द कौन है ? क्यों हमें गोविन्द
को जानकर अपनी यात्रा का समापन कर देना चाहिए ? आइये ! गोविन्द को जानने के लिए उसकी
तरफ चलें |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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