शरीर-7
गीता
में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं कि-
पुरुषः प्रकृतिस्थो भुंक्ते प्रकृतिजान्गुणान्
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कारणं गुणसंगोSस्य सदसद्योनिजन्मसु
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अर्थात
त्रिगुणी प्रकृति में स्थित पुरुष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थों को
भोगता है और इन गुणों का संग ही इस जीवात्मा के पुनर्जन्म का कारण है |
सूक्ष्म शरीर से ही पुनर्जन्म होता है क्योंकि
प्रकृति के गुणों के संग से मनुष्य के मन और मन से उसके स्वभाव में परिवर्तन हो
जाता है | मन से सूक्ष्म शरीर और फिर स्वभाव से प्रकृति के गुणों में परिवर्तन होता
है | प्रकृति के इन तीनों गुणों में परिवर्तन हो जाने से ही कारण शरीर बनता है | कारण
शरीर से फिर जीवात्मा को एक नया स्थूल शरीर मिलता है |
सूक्ष्म-शरीर और कारण-शरीर जब तक साथ रहेंगे, तब तक पुनर्जन्म होता रहेगा | जब मोक्ष
हो जायेगा तब तीनों ही शरीर छूट जायेंगे | अगर किसी कारण से मोक्ष नहीं हुआ और
पहले ही आ गई प्रलय (Holocaust), तो प्रलय में भी तीनों शरीर छूट जाएंगे | स्थूल
शरीर तो वैसे ही थोड़े-थोड़े दिनों में छूटते रहते हैं | प्रलय में सूक्ष्म शरीर भी
टूट-फूट कर नष्ट हो जायेगा और कारण शरीर में अपने आपको विलीन कर देगा | इस प्रकार
प्रलय में अंततः केवल कारण शरीर रुपी प्रकृति ही बची रहेगी | कहने का अर्थ है कि
प्रलय में सूक्ष्म शरीर भी नहीं बचता बल्कि वह कारण शरीर के रूप में परिवर्तित हो
जाता है | यह ऐसे ही होता है जैसे हमने स्वर्ण का एक टुकड़ा लिया और उससे कंगन बनवा
लिए | फिर कंगन टूट कर खराब होने लगा अथवा उससे मन उचट गया तो उसको तोड़ कर फिर से सोना
बना लिया | अब यह वापिस बना सोना कारण शरीर बन गया | इस स्वर्ण को गलाकर फिर नया
आभूषण जैसे गले का हार बना लिया | ऐसे ही यह प्रक्रिया बार-बार दीर्घ अवधि (Long
term) तक चल सकती है, परन्तु स्वर्ण (कारण शरीर) से कभी मुक्ति नहीं मिल सकती जब
तक कि स्वर्ण से मोह अर्थात आसक्ति को हटा न लिया जाये |
क्रमशः
प्रस्तुति-
डॉ. प्रकाश काछवाल
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हरिः शरणम् ||