Friday, November 23, 2018

सकाम भक्ति/निष्काम भक्ति

सकाम भक्ति/ निष्काम भक्ति 
मलूकदास और नामदेव, दोनों ही प्रसंग से स्पष्ट होता है कि मनुष्य के जीवन में भक्ति के होने का बड़ा महत्व है। भक्ति में भी निष्काम भक्ति सर्वश्रेष्ठ है। मलूकदास को परमात्मा में विश्वास नहीं था।वे नास्तिक थे । नास्तिक से आस्तिक होने में देर कितनी लगी ? एक दिन मात्र ही तो लगा इसमें। सत्संग से उपजी श्रद्धा के कारण मलूकदास के मन में परमात्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए परीक्षा लेने का आग्रह हुआ। उस परीक्षा के अनुभव ने परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार करने के साथ साथ उनके प्रति विश्वास पैदा किया और श्रद्धा को मजबूत किया। मलूकदास तत्काल ही निष्काम भक्ति की ओर चल पड़े। लेकिन एक सांसारिक व्यक्ति के लिए प्रारम्भ से ही निष्काम भक्ति के लिए प्रेरित होना संभव नहीं हो सकता। परीसा भागवत भी तो प्रारम्भ से ही सकाम भक्ति में ही लीन था।
सकाम भक्ति को व्यर्थ न समझें।निष्काम भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ भक्ति है परंतु उस भक्ति को स्वीकार करना एक सांसारिक व्यक्ति के लिए लगभग असंभव है।"भूखे भजन न होय गोपाला।ये ले अपनी कंठी माला।।" कहने का अर्थ यह है कि सकाम भक्ति में हमारी कामनाओं से हम परमात्मा को अवगत कराते हैं।परमात्मा दयावान है, वे भूखा किसी को भी नहीं सोने देते । आपकी आवश्यकता वे पूरी करेंगे ही, इस भावना के साथ ही सकाम भक्ति निष्काम भक्ति बनने की ओर अग्रसर होती है। परंतु यह मनुष्य नाम का प्राणी है न, यह पेट भरकर, अपनी आवश्यकताएँ पूरी हो जाने पर भी संतुष्ट नहीं होता।उसकीआवश्यकता जब विलासिता में परिवर्तित हो जाती है, तब उसकी भक्ति भी केवल कामना पूर्ति के साधन बनकर रह जाती है।सकाम भक्ति से निष्काम भक्ति की ओर तो केवल वही व्यक्ति अग्रसर हो सकता है जो अपनी आवश्यकताओं के पूरा हो जाने पर संतुष्ट हो जाता है। संतुष्टि के अभाव में सकाम भक्ति पर अटक जाने का खतरा है । यह बात सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए सकाम भक्ति से निष्काम भक्ति की ओर वही जा सकता है, जो जीवन में संतुष्टि धारण कर ले ।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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