सनातन धर्म -हिंदी/अंग्रेजी भाषा -4
चतुर्थ बिंदु -
Please don't be apologetic about idol worship and say “Oh, that's just symbolic". All religions have idolatry in kinds or forms - cross, words, letters (calligraphy) or direction.
Also let's stop using the words the words 'idols', 'statues' or 'images' when we refer to the sculptures of our Gods.
Use the terms 'Moorthi' or 'Vigraha'. If words like Karma, Yoga, Guru and Mantra can be in the mainstream, why not Moorthi or Vigraha?
सनातन धर्म में मूर्ति पूजा का बड़ा महत्व है।मूर्ति पूजा का कई व्यक्ति विरोध करते हैं। मैं कहता हूं कि आप मूर्ति पूजा में विश्वास रखते हैं अथवा नहीं, यह बात आपके विचारों की है परन्तु इसका विरोध कदापि न करें। मूर्ति पूजा में विश्वास न रखना और मूर्ति पूजा का विरोध करना, दोनों अलग अलग बातें हैं।ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदासजी महाराज कहते थे कि किसी भी बात का खंडन मंडन कभी भी नहीं करना चाहिए।सभी बातें न तो पूर्णतया सत्य होती है और न ही असत्य। सत्य केवल परमात्मा हैं। आप मूर्ति अथवा विग्रह में परमात्मा देख पा रहे हैं तो फिर मूरत/विग्रह सत्य है।उसकी पूजा करना भी सही है। मूर्ति उसी के लिए परमात्मा है, जो उसमें पत्थर न देखकर परमात्मा को देखता है।हम मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा इसीलिए कराते हैं जिससे हमें यह विश्वास हो जाये कि इसमें अथवा यह अब पत्थर न होकर भगवान है।
सनातन धर्म कण कण में भगवान को मानता है।ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रत्येक स्थान,वस्तु और व्यक्ति में ईश्वर है।ऐसे में मूर्ति को प्रतीक कहना उचित नहीं है और न ही मूर्ति पूजा केवल प्रतीक मात्र ही है।मूर्ति और उसकी पूजा केवल उनके लिए प्रतीक भर हो सकती है जिनको मूर्ति में भी भगवान होने का विश्वास न हो।अतः मूर्ति को विग्रह कहना अधिक उपयुक्त है न कि प्रतीक । पूजा भी मन लगाकर की जाए तो भगवान भी प्रकट है अन्यथा पूजा भी मात्र औपचारिकता बन कर रह जाती हूं। सब कुछ आपके मनोभाव पर निर्भर करता है। मन मे भाव अच्छे हो तो प्रत्येक स्थान पर भगवान की पूजा की जा सकती है क्योंकि वह सब जगह उपस्थित है।क्या मुझे कोई बात सकता है कि वह कहां नहीं है ?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
चतुर्थ बिंदु -
Please don't be apologetic about idol worship and say “Oh, that's just symbolic". All religions have idolatry in kinds or forms - cross, words, letters (calligraphy) or direction.
Also let's stop using the words the words 'idols', 'statues' or 'images' when we refer to the sculptures of our Gods.
Use the terms 'Moorthi' or 'Vigraha'. If words like Karma, Yoga, Guru and Mantra can be in the mainstream, why not Moorthi or Vigraha?
सनातन धर्म में मूर्ति पूजा का बड़ा महत्व है।मूर्ति पूजा का कई व्यक्ति विरोध करते हैं। मैं कहता हूं कि आप मूर्ति पूजा में विश्वास रखते हैं अथवा नहीं, यह बात आपके विचारों की है परन्तु इसका विरोध कदापि न करें। मूर्ति पूजा में विश्वास न रखना और मूर्ति पूजा का विरोध करना, दोनों अलग अलग बातें हैं।ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदासजी महाराज कहते थे कि किसी भी बात का खंडन मंडन कभी भी नहीं करना चाहिए।सभी बातें न तो पूर्णतया सत्य होती है और न ही असत्य। सत्य केवल परमात्मा हैं। आप मूर्ति अथवा विग्रह में परमात्मा देख पा रहे हैं तो फिर मूरत/विग्रह सत्य है।उसकी पूजा करना भी सही है। मूर्ति उसी के लिए परमात्मा है, जो उसमें पत्थर न देखकर परमात्मा को देखता है।हम मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा इसीलिए कराते हैं जिससे हमें यह विश्वास हो जाये कि इसमें अथवा यह अब पत्थर न होकर भगवान है।
सनातन धर्म कण कण में भगवान को मानता है।ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रत्येक स्थान,वस्तु और व्यक्ति में ईश्वर है।ऐसे में मूर्ति को प्रतीक कहना उचित नहीं है और न ही मूर्ति पूजा केवल प्रतीक मात्र ही है।मूर्ति और उसकी पूजा केवल उनके लिए प्रतीक भर हो सकती है जिनको मूर्ति में भी भगवान होने का विश्वास न हो।अतः मूर्ति को विग्रह कहना अधिक उपयुक्त है न कि प्रतीक । पूजा भी मन लगाकर की जाए तो भगवान भी प्रकट है अन्यथा पूजा भी मात्र औपचारिकता बन कर रह जाती हूं। सब कुछ आपके मनोभाव पर निर्भर करता है। मन मे भाव अच्छे हो तो प्रत्येक स्थान पर भगवान की पूजा की जा सकती है क्योंकि वह सब जगह उपस्थित है।क्या मुझे कोई बात सकता है कि वह कहां नहीं है ?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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