Monday, November 19, 2018

प्रेरक प्रसंग के संदेश -2

प्रेरक प्रसंग के सन्देश-2
'अजगर करे न चाकरी' प्रसंग से दो महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलते हैं-प्रथम, सत्संग से ही जीवन परिवर्तित होता है और दूसरा बिना ईश्वरीय कृपा के सत्संग नहीं मिलता ।मनुष्य एवं अन्य जीवों में मूलभूत यही अंतर है कि अन्य जीव सत्संग से लाभ नहीं उठा सकते। आप ने देखा होगा कि सत्संग के समय उस क्षेत्र में कई प्राणी आकर बैठ जाते हैं परंतु वे उसका लाभ नहीं ले सकते।सत्संग विवेक को जाग्रत करता है और मनुष्य के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्राणी में यह क्षमता नहीं है।हमारे धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अल्प समय के लिए मिला सत्संग भी जीवन की धारा को मोड़ने के लिए पर्याप्त होता है।
         एक चोर चोरी करने के लिए दिन के समय ही एक घर में घुस गया।घर किसी प्रभावशाली व्यक्ति का था। घर के किसी व्यक्ति ने  चोर को चोरी करते हुए देख लिया। चोर के जितना माल हाथ लगा उसे लेकर वहां से भाग छूटा। रसूखदार ने तुरंत पुलिस को फोन किया। मामला vip का था,तो पुलिस को सक्रिय होना ही था।अब चोर माल सहित आगे आगे और पुलिस उसके पीछे पीछे। चोर को छिपने का स्थान तक नहीं मिल रहा था। तभी उसे एक घर में सत्संग होता दिखाई दिया। उसे छिपने के लिए वह स्थान उपयुक्त लगा।वह सत्संग हो रहे स्थान पर प्रवेश कर छिपने के लिए श्रोताओं के मध्य जाकर बैठ गया।चोरी के माल की गठरी को पास में ही रखकर प्रवचन को सुनने का नाटक लगा। संत कह रहे थे -"इस संसार में जिस व्यक्ति को एक क्षण के लिए भी सत्संग मिल जाता है,उसके समस्त पाप कट जाते हैं,उसका कल्याण हो जाता है। समय निकालकर सत्संग करना अन्य सांसारिक कार्यों से ज्यादा जरूरी है।"
उसी समय पुलिस का उस पांडाल में प्रवेश होता है। पुलिस उड़ती नज़रें पांडाल में बैठे श्रोताओं पर डालती है और यह सोचकर वहां से निकल जाती है कि भला,चोर यहां पर क्यों कर आएगा ? इस प्रकार चोर पकड़े जाने से बच जाता है। चोर को बड़ा आश्चर्य होता है । उसे संत की कही वाणी पर विश्वास हो जाता है और मन ही मन में भविष्य में चोरी न करने का संकल्प कर लेता है। सत्संग समाप्ति के बाद वह चोरी का माल वहीँ छोड़कर चल देता है। रास्ते में वह सोचता है कि "संत सही कह रहे थे । सत्संग तो अल्प समय के लिए भी मिले तो जीवन परिवर्तित हो जाता है। आज मैंने कुछ देर ही सत्संग किया और पकड़े जाने से बच गया, अगर  नित्य सत्संग करूँ तो निश्चित ही मेरा कल्याण हो सकता है।"
       चोर को सत्संग मिला,ईश्वर कृपा से।अगर वह उस राह पर ही नहीं आता जहां सत्संग हो रहा था,तो वह या तो कहीं अन्य स्थान पर छिप जाता अथवा पकड़ा जाता।दोनों ही परिस्थितियों में उसकी चोरी करने की आदत नहीं छूटती। परमात्मा की कृपा होने से ही उसको वही राह भागने को मिली,जिस राह पर सत्संग हो रहा था। सत्संग में एक ही बात ने उसको प्रभावित किया कि अल्प समय के लिए मिला सत्संग भी कल्याणकारी होता  है। इस बात का उस पर प्रभाव तभी पड़ा,जब वह पकड़े जाने से बच गया। बच जाने से ही उसका जीवन परिवर्तित हुआ, जो पकड़े जाने पर संभव नहीं था। यह है, सत्संग का प्रभाव। अतः मनुष्य को सत्संग कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए और कुसंग से सदैव बचना चाहिए।मलूकदास का तो एक सत्संग से ही कल्याण हो गया और इसी प्रकार चोर का भी।परंतु यह कल्याण हुआ,सत्संग में सुनी हुई बातों को आत्मसात करने से। सत्संग में प्रवचन सुनने मात्र से कल्याण नहीं होता बल्कि उस ज्ञान को जीवन मे अपनाने से होता है ।
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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