पुरुषार्थ-42 – मोक्ष-2
नश्वर
संसार से मुक्ति के लिए दो ही मार्ग हैं – ज्ञान मार्ग और कर्म मार्ग | ज्ञान
मार्ग में आत्म-ज्ञान को उपलब्ध हुआ जाता है और कर्म मार्ग में कर्म करते हुए भी
कर्म न करना होता है अर्थात कर्ताभाव समाप्त करना होता है | इस प्रकार कहा जा सकता
है कि शरीर और कर्ताभाव से मुक्त होना ही मोक्ष को उपलब्ध होना है | इससे सिद्ध है
कि मोक्ष जीवन की अंतिम परिणिति है | मोक्ष को देखा नहीं गया है इसलिए इसको कई
मनीषी काल्पनिक और आत्मवादी मानते हैं | इस मोक्ष के स्थान पर ‘जीवन-मुक्ति’ अथवा ‘विदेह’
शब्द अधिक उचित प्रतीत होता है क्योंकि मनुष्य अपने जीवन काल में ही सुख-दुःख आदि
द्वंद्वों से बाहर निकलकर इस संसार से मुक्त हो जाता है | इसमें व्यक्ति ‘तत्वमसि’
से ‘अहं ब्रह्मास्मि’ की स्थिति की और
बढ़ता है | वेदांत में आत्म-साक्षात्कार को ही मोक्ष माना गया है | शरीर की मृत्यु
के पश्चात् वह ब्रहम में ही विलीन हो जाता है |
बोद्ध-दर्शन में निर्वाण की कल्पना
मोक्ष के समकक्ष की गयी है |’निर्वाण’ शब्द का अर्थ है, बुझ जाना | निर्वाण का
अर्थ है अपनी भावनाओं पर संयम रखना, जिससे व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चल सके |
सदाचार जीवन का ही दूसरा नाम निर्वाण है | निर्वाण का अर्थ है, वासनाओं से मुक्ति |
मन में जितनी भी कामनाएं उठी हैं, उन सभी कामनाओं को शांत कर लेना, उन कामनाओं का
बुझ जाना | जीवन का लक्ष्य ही निर्वाण है | बौद्ध दर्शन में बंधन का कारण तृष्णा,
वितृष्णा और अविद्या को माना गया है | जब व्यक्ति इनसे मुक्त हो जाता है, तब वह
निर्वाण को प्राप्त हो जाता है | इसके लिए तथागत (भगवान बुद्ध) ने अष्टांगिक मार्ग
की व्यवस्था दी है | ये आठ मार्ग हैं- सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वचन,
सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयत्न,
सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि | इनमें प्रथम दो ज्ञान(ज्ञान-योग), मध्य के तीन शील
(कर्म-योग) और अंतिम तीन समाधि (भक्ति-योग) के अंतर्गत आते हैं |
जैन दर्शन में जीव व अजीव (जड़) का सम्बन्ध कर्म के माध्यम से स्थापित होता
है | जीव हम स्वयं है और जड़ है-संसार के पदार्थ, जिनके माध्यम से हमें सुख मिलने
की आशा रहती है | कर्म के माध्यम से जीव का अजीव अर्थात जड़ के साथ बंध जाना ही
बंधन है | इस प्रक्रिया को आस्राव कहा जाता है |आस्राव का निरोध होने से ही जीव
अजीव के बंधन से मुक्त हो सकता है | इसके लिए त्रिविध संयम की व्यवस्था की गई है |
सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन (श्रद्धा) और सम्यक चरित्र | सम्यक दर्शन (श्रद्धा), सम्यक
ज्ञान और सम्यक चरित्र की पालना से मोक्ष की प्राप्ति होती है | गीता में इन तीनों
को क्रमशः ज्ञान,भक्ति और कर्म योग नाम से कहा गया है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
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